Book Title: Oswal Porwal Aur Shreemal Jatiyo Ka Sachitra Prachin Itihas Author(s): Gyansundar Maharaj Publisher: Ratnaprabhakar GyanpushpamalaPage 67
________________ देविकी प्रतिज्ञा. (५५) सम्यक्त्व धारिणि हुई मांस तो क्या पर देवीने एसी प्रतिमा कर कह दीया कि आज से मेरे रक्त वर्ण का पुष्प तक भी नहीं छडेगा. और मेरे भक्त जो उपके शपुर में महावीर के बिंब की पूजा करते रेहगें आचार्य रत्नप्रभसूरि और इन की संतान की सेवा उपासन करते रहेगें उन के दुःख संकट को में निवारण करूगी और विशेष काम पडने पर मुझे जो आराधन करेगा तो में कुमारी कन्या के शरीर मे अवतीर्ण हो आउगी इत्यादि देवी के वचन सुन और भी " श्री सच्चिका देव्या वचनात् क्रमेण श्रुत्व प्रचुरा जनाः श्रावकत्वं प्रतिपन्नाः" बहुत से लोग जैन धर्म को स्वीकार श्रावक बन गये और जैन धर्म का वडा भारी उद्योत हुवा. उपकेश पट्टन में भगवान् महावीर प्रभु का सिखर बद्ध मंदिर तय्यार हो गया तत्पश्चात् प्रतिष्टा का मुहूर्त मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमि गुरुवार को निश्चित हुधा सब सामग्री तैयार हो रहीथी इधर रत्नप्रभसूरि की आज्ञा से ४६५ मुनि विहार किया था उन से कनकप्रभादि कितनेक मुनि कोरंटपुर ( कोला पट्टन) में चतुर्मास किया था आपश्री के उपदेश से वहां के श्रावक वर्गने भगवान महावीर का नवीन मन्दिर बनवाया निस्के प्रतिष्ठा का महुर्त भी मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमि का था तब कोरंट संघ एकत्र हो आचार्य रत्नप्रभसूरि को आमन्त्रण करने को आये “ तेनावसरे कोरंटकस्य श्राद्धानां आह्वानं भागतं" अर्ज करने पर सूरिनीने कहा कि इस टेम पर यहां भी प्रतिष्टा है वास्ते तुम वहां पर रहे हुवे कनकप्रभादि मुनियों से प्रतिष्ठा करवा लेना. इसपर कोरट Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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