Book Title: Oswal Porwal Aur Shreemal Jatiyo Ka Sachitra Prachin Itihas Author(s): Gyansundar Maharaj Publisher: Ratnaprabhakar GyanpushpamalaPage 72
________________ जैन जातिमहोदय. प्र-तीसरा. यह तो पहले पड़ चुके है कि आचार्य श्री के पास वीरधवल नामके उपाध्याय अच्छे विद्वान थे एक समय राजग्रह नगरमे किसी यक्षने बडा भारी उपद्रव मचा रखाथा जिसके जरिय जैनतो क्यापर सब नागरिक लोक दुःखी हो रहेथे बहुत उपचार किया पर उपद्रव शान्त नहीं हुवा इसपर संघने रत्नप्रभसूरिकि तलास कराइ तो आपका विहार मरूभूमिकी तरफ हो रहाथा तब राजगृहका संघ आचार्यश्री के पास आया और वहांका सब हाल अर्जकर उधर पधारने की विनंति करी सूरिजीने अपनी सलेखनाध्यायन आदि के कारणों से आपने अपने शिष्य वीरधवल उपाध्यायको आज्ञा दी कि हमारा वासक्षेप लेके वहां जावों और संघका संकट को दूर करो तदानुसार उपाध्यायजी क्रमशः, विहार कर राजगृह पहुँचे रात्रीमे आपने स्मशानभूमि मे ध्यान लगा दीया रात्रीमे यक्ष आया पहला तो उपाध्यायजीसे दूर रह बहुत से उपसर्गका ढोंग वत. लाया पर आपके तपतेजसे व उपदेश से वह शान्त हो उपाध्यायजीसे अर्ज करी कि इस नगरीके लोगोंने मेरी बहुत आशातना करी है उपाध्याय जीने उसे उपदेशद्वारा शान्त करदीया पर उसने कहा कि में आपकी आज्ञा सिरोद्धार करता हु पर मेरा नाम कुच्छ न कुच्छ रहना चाहिये. उपाध्याय जीने स्वीकार करलिया वस । सब उपद्रव शान्त हो गया संघमे और नगरमे आनंद मंगल और जैनधर्मकी नयध्वनि होने लग गई उपाध्याय जीने कोतनेहो काल तो उसी प्रान्त मे विहार कर पवित्र तीर्थोंकी यात्रा करी पुनः सूरिजी महाराजकि सेवामे आये और यहाँका सब हाल कह सुनाया यक्षका नाम रखने के लिये बोरधवल उपाध्यायको अपने पद पर आचार्यपद स्थापन कर उसका नाम यक्षदेवसूरिरखदीया तत्पश्चात् आचार्य रत्नप्रम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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