Book Title: Oswal Porwal Aur Shreemal Jatiyo Ka Sachitra Prachin Itihas Author(s): Gyansundar Maharaj Publisher: Ratnaprabhakar GyanpushpamalaPage 75
________________ आचार्यश्री का स्वर्गवास. सरि सलेखना करते हुवे पवित्रतीर्थ सिद्धाचल पर पधार गये वहां एक मासका अनसन कर समाधि पूर्वक नमस्कार महामंत्र का ध्यान करते हुवे नाशमान शरीर का त्यागकर आप बारहवे स्वर्गमें जाके विराजमान होगये जिस समय आचार्य श्री सिद्धाबलपर अनसन कीया था उसरोंजसे अन्तिम तक करीबन ५००००० श्रावक श्राविका सिवाय विद्याधर और अनेक देवि देवता वहां उपस्थित थे आपश्रीका अग्निसंस्कार होने के बाद अस्थि और रक्षा भस्मी मनुष्योंने पवित्र समझ आपश्रीकी स्मृति के लिये ले गयेथे आपके संस्कार के स्थानपर एक बडा भारी विशाल स्थुभभी श्री संघने कराया था जिस्मे लाखों द्रव्य संघने खरच कीयाथा पर कालके प्रभाषसे इस समय वह स्थुम नहीं है तो भी आपश्रीकी स्मृति चिन्ह आजभी वहां मोजुद है विमलवसीमे आपश्री के चरण पादुका अभी मी है इस रत्नप्रभसूरि रूप रत्न खोदनेसे उस समय संघका महान् दुःख हुवाथा भविष्यका आधार आचार्य यक्षदेवसूरि पर रख पवित्र गिरिराजकी यात्रा कर सब लोग वहांसे विदाहो आचार्य श्री यक्षदेवसूरिके साथ में यात्रा करते हुवे अपने अपने नगर गये और आचार्य यक्षदेवसूरि अपने पूर्वजोके बनाये हुवे जैन जातिका उप देशरूपी अमृतधारा से पोषण करते हुवे फीरभी नये जैन बनाते हुधे उसमे वृद्धि करने लगे ॐ शान्ति यह भगवान पार्श्वनाथ का छठ्ठा पाट आचार्य रत्नप्रभसूरि अपनी चौरासी वर्षकी आयुष्य पूर्ण कर धीरात् चौरासी वर्षे निर्वाण हुवे यह महा प्रभा. विक आचार्य हुधे इति । -*OOK Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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