Book Title: Oswal Porwal Aur Shreemal Jatiyo Ka Sachitra Prachin Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala
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( १२ )
जैन जातिमहोदय.
एक
चर्या करते हुवे देव मनुष्य तीर्यचादिके अनेकानेक उपसर्ग परिसहों को सहन कर पूर्व संचित दुष्ट कर्मोंका क्षय कर कैवल्यज्ञान दर्शन को प्राप्त कर लीया आप सर्वज्ञ वीतराग ईश्वर परमब्रह्म लोकालोक के चराचर पदार्थों का भाव एक ही समय मे देखने जानने लगे पूर्व तीर्थकरों के शासन के संघ कि शिथलता को दूर कर पहले के नियमोसे आप एसे सख्ताई के नियम रखे कि फिरसे भ्रमणसंघ में शिथिलता का संचार होने न पावे भगवान् महावीरने बडे ही बुलंद अवाज से 'अहिंसा परमोधर्मः ' का प्रचार करना प्रारंभ कीया शान्ति रूपीं एसा जल बरसाया कि दग्ध भूमिरूप जनता में दम शान्ति पसर गई । धार्मिक सामाजिक नैतिक त्रुटि हुई श्रृंखला फिर अपने स्थानपर पहुंच गई आजके ऐतिहासिक विद्वानोंका मत है कि भगवान् महावीर के झंडा निचे राजा महाराजा और चालीश क्रोड जनता शान्तिरसका अस्त्रादन कर रही थी केशी श्रमणादि पार्श्वनाथ संतानियें भी प्रायः सब भग वान् महावीरके शासन को स्वीकार कर अपना कल्यान करने लगे पर पार्श्वनाथ के संतानिये थे वह पार्श्वनाथके नामसे हो विख्यात रहे । आजपर्यन्त भी पार्श्वनाथ भगवान् की संतान परम्परासे अविच्छन चलीं आ रही है । भगवान् महावीरका पवित्र जीवन के लिये पूर्वीय और पाश्चात्य विज्ञान सब एक ही अवाज से स्वीकार करते है कि महावीर भगवान् एक जगत् उद्धा रक ऐतिहासिक महापुरुष हो गये है जगत्मे अहिंसा का झंडा महावीरने दी फरकाया है वेदान्तियों कि यज्ञप्रवृति पशुहिंसाने रोकी है तो एक महावीरने हो रोकी है जनताका कल्याण के लिये महावीरप्रभुका जीवन एक धेयरूप है इत्यादि महावीर भगवान् के जीवन विस्तार मुद्रित हो गया है बास्ते में मेरे
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