Book Title: Oswal Porwal Aur Shreemal Jatiyo Ka Sachitra Prachin Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala
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केशीश्रमणाचार्य. .
(११) मुनियोका विहार करवा के आप एक हजार मुनियों के साथ मागध देशमें विहार कर पशुबलि करनेवाले यज्ञ और मांसभक्षण करने वाले बोद्धों के सामने खडे हो गये.
आपश्री के परम पुरुषार्थ का यह फल हुवा कि राजा चेटक-सतानिक दधिवाहन सिद्धार्थ-विजयसेन चन्द्रपाल अदिनशत्रु प्रसन्नजीत और राना प्रदेशी आदि अनेक राजा महाराजाओं और लाखो मनुष्यों को पतित दशासे उद्वार कर पवित्र जैनधर्म के उपासक बना दीये थे.
आजकल इतिहास शोधखोल से पता मिलता है कि वह जमाना बडा हि विकट था आपुस के धर्म पाद के लिये स्थान स्थानपर मोरचा बन्धी हो रही थी। आत्मकल्यान करने कि जो आत्म शक्तियोथी उनका दुरुपयोग वाद-विवाद में होता था अज्ञानताका का साम्राज्य था जनता में बड़ा भारी कोलाहल मच रहा था इत्यादि कुदरत एक एसा महा पुरुष की प्रतीक्षा कर रही थी कि जिसकी परमावश्यक्ता थी
इसी समय में जगदुद्धारक त्रीलोकी नाथ शान्तिका समुद्र चरमतीर्थकर भगवान महावीर प्रभुने अवतार धारण कीया संक्षिप्त में-क्षत्रीकुण्ड नगर का राजा सिद्धार्थ कि त्रिशलादे राणि की पवित्र रत्न कुक्षी में भगवान् महावीरने अवतार लीया। जन्म समय छप्पन दिगकुमारीकाओंने सूतिका कर्म किया सौधर्मादि चौसठ इन्द्रोंने सुमेरूगिरिपर भगवान का नन्म महोत्सव किया. भगवान् ३० वर्ष गृहवास में रहे एक पुत्री हुई वह नमालि क्षत्री कुमारको व्याही थी अन्तमें गृहा वस्थामें एक वर्ष तक वर्षीदान दोया तत्पश्चात् इन्द्रनेरेन्द्रों के महोत्सवपूर्वक आपने दीक्षा धारण करी १२॥ वर्ष घोर तप
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