Book Title: Oswal Porwal Aur Shreemal Jatiyo Ka Sachitra Prachin Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 27
________________ सूरिजी और पद्मावती. (२१) और तुमारे आश्रित रहे हुवे बिचारे भद्रिक नीवो को भी साथ ले जाने की कोशीस करते हो अगर तुम अपना भला चाहाते हो तो तत्वज्ञ पुरुषों के फरमाये हुवे शुद्ध पवित्र धर्म का सरण लो कि जिस से तुमारा कल्याण हो! इस पर ब्राह्मणोने पुच्छा की आपके तत्वज्ञ पुरुषोंने कोनसा रहस्ता बतलाया है ? सूरिजीने कहा देवत्व धीजिनेष्वषा मुमुक्षुषु गुरुत्वधी __ धर्म धीराहता धर्मः तत्स्यात्सम्यक्त्वदर्शनम् " इत्यादि उपदेश के अन्त में राजादि ४५००० घरों को जैन धर्म का स्वीकार कर हजारों लाखो पशुओ को अभयदान दीलाया. राजा के पूर्वावस्था में गुरु प्रग्बट ब्राह्मण थे उसने कहा की हमारा भी कुच्छ नाम तो रखना चाहिए कि हम आप के उपदेश से जैन धर्म को स्वीकार कीया है इस पर सूरिजीने उन सब की प्रग्वट जाति स्थापन करी आगे चलकर उसी जाति का नाम “ पोरवार" हुवा है श्रीमाल नगर और पद्मावती नगरी के आसपास फिर हजारो घरों को प्रतिबोध दे जैन बना के उन पूर्व जातियों में मीलवाते गये वास्ते यह नातियों बहुत विस्तृत्व संख्या में हो गई । आपत्री के उपदेश से श्रीमाल नगर में श्री ऋषभदेव का मन्दिर पद्मावती नगरी में श्री शान्तिनाथ भगवान का मन्दिर तथा उस प्रान्त में और भी बहुत से मन्दिरों की प्रतिष्टा आपके कर कमलो से हुई श्रीमाल नगर से यों कहो तो उस प्रान्त से एक सिद्धाचलजी का बड़ा भारी संघ निकाला था आबू के जीर्ण मन्दिरो का जीर्णोद्धार भी इसी संघने करवाया इत्यादि आपश्री के उपदेश से अनेक धर्म कार्य हुवे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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