Book Title: Oswal Porwal Aur Shreemal Jatiyo Ka Sachitra Prachin Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 29
________________ रत्नचुड विद्याधर. (२३) - भावार्थ-जिस समय रामचंद्रजी लंकाका विध्वंस किया था उस समय हमारे पूर्वज चन्द्रचुड विद्याधरोका नायक भी साथमें था अन्योन्य पदार्थों के साथ रावणके चैत्यालयसे लीलापनाकी पार्श्वनाथ प्रतिमा वैतादयगिरिपर ले आये थे वह क्रमशः आज मेरे पास है और मुझे एसा अटल नियम है कि में उस प्रतिमाका दर्शन सेवा कीयों वगर अन्न जल नहीं लेता हुँ मेरी इच्छा है कि भगवान की प्रतिमा साथमे रख दीक्षा ले भावपूजा करता हुवा मेरा पूर्व नियमको अखण्डितपने रखुं । आचार्यश्रीने अपना श्रुतज्ञानद्वारा भविष्यका लाभालाभपर विचार कर फरमाया कि जहां सुखम् " इसपर रत्नचुड विद्याधरोका राजा बडा भारोहर्ष मनाता हुँधा अपने बैमानवासी पांचसो विद्याधरो के साथ दीक्षा लेने को तय्यार हो गये. " गुरुणा लामं ज्ञात्वा तसै दीक्षा दत्त्वा" शेष विद्याधर दीक्षाका अनुमोदन करते हुवे श्री शनयादि तीर्थों की यात्रा कर वैताव्य गिरिपर जाके सब समाचार कहा तत्पश्चात् रत्तचुडराजा के पुत्र कनकचुड को रान गादी बेठाया और वह सहकुटम्ब आचार्यश्री को वन्दन कर. नेको आये रत्नचुड मुनिका दर्शनकर पहला तो उपालंभ दीये बाद चारित्र का अनुमोदन कर देशना सुन चन्दन नमस्कार कर विसर्जन हुवे । रत्नचुड मुनि क्रमशः गुरू महाराज का विनय सेवाभक्ति करते हुवे "क्रमेण द्वादशांगी चतुर्दश पूर्वी बभूवः " कहने कि आवश्यक्ता नहीं है पहला तो आपका मम्म ही विद्याधर वंशमे दूसरा आप विद्याधरो के राजा तीसरा विधानिधि गुरुके चरणार्षिद की सेवा कि फिर कभी कीस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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