Book Title: Oswal Porwal Aur Shreemal Jatiyo Ka Sachitra Prachin Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala
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( ३६ ) .
जैन जातिमहोदय. प्र-तीसरा.
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राजाने साचाकी शोभाग्यदेवी की सादी इसके साथ कर देने मे एक तो में मंत्रि का ऋणि हुँ वह भी अदा हो जायगा दूसरा राणिका कहना भी रह जायगा एसा समझ वडे आडाम्बर के साथ अपनी कन्या शोभाग्यदेवी मंत्रेश्वरका पुत्र तिलोकसी को परणादी. वह दम्पति एकदा अपनि सुखशेर्थ्य में सुते हुवे थें " मंत्रीश्वर ऊहड सुतं भुजंगेनदृष्टः " मंत्रीश्वर के पुत्र ती लोकसी को अकस्मात् सर्प काट खाया अज्ञ लोक कहते है की सूरिजीने रूह का साप बना के राजा का पुत्र को कटाया था यह बिलकुल मिथ्या है " नूतन परणा हुवा राजा का जमाई ( मंत्रीश्वर का पुत्र ) को सांप काट खाने से नगर मे हा-हाकार मच गया बहुत से मंत्र यंत्र तंत्र बादी आये अपना अपना उपचार सबने किया जिसका फल कुच्छ भी न हुवा आखिर कुमरको अग्नि संस्कार करने के लिये स्मशान ले जाने की तैयारी हुई तस्य स्त्री काष्ट भक्षणे स्मशाने आघाता " राजपुत्री सौभाग्यदेवी अपना पति के पीच्छे सती होने को अश्वारूढ हो वह भी साथ मे हो गई । राजा मंत्री और नागरिक महान् दुःखि हुवे रूदन करते हुवे. स्मशान भूमि की तरफ जा रहे थे " कारण उस समय एसी मृत्यु क्वचित् ही होती थी" -
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इधर चमुंडा देविने सोचा कि मेने सूरिजी को विनंति कर रख तो लिया और कहा था कि बहुत लाभ होगा जिसका आज तक मैने कुच्छ भी प्रयत्न नहीं किया पर आज यह अवसर लाभ का है एसा विचार एक लघु मुनि का रूप बना स्मशान की तरक जाता हुवा कुमर का झापन (सेविका) के सामने जाके कहा कि " जीवितं कथं ज्वालियतः " भो लोगों इस जीवत कुमर को जलाने को क्यों ले जाते हो इतना कह
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