Book Title: Oswal Porwal Aur Shreemal Jatiyo Ka Sachitra Prachin Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 47
________________ सूरिजी का उपदेश. योनिमें भ्रमन किया पर उत्तम सामग्री के अभाष शुद्ध धर्म न मीला, हे राजन् ! सुकृत कर्मका सुकृत फल और दुःकृत कर्मका दुःकृतफल भविष्यमे अवश्य मीलता है सबसे पहला तो जीवोको मनुष्यभव मीलना मुश्किल है कदाच् मनुष्य भव मील गया तो आर्य क्षेत्र उत्तम कुल शरीरनिरोग इन्द्रियोपूर्ण और दोर्घायुष्य क्रमशः मोलना दुर्लभ है कदाच यह सब सामग्री मील जावे तो सदगुरुओंकी सेवा मिलना कठिन है यह आप जानते हो कि गुरु विगरह ज्ञान हो नहीं सक्ता है जगत् मे पसे भी गुरु नाम धरानेवाले पाये जाते है की वह भांगों पीना, गाजा चडश उडाना, व्यभिचार करना, यज्ञहोम के नाम हजारो लाखों पशुओंके प्राण लुटना मांस मदिरा भक्षण करना इत्यादि अत्याचार करने वालोसे सद्गुणों की . प्राप्ति कभी नहीं होती है वास्ते आत्मकल्याणके लिये सबसे पहला सदगुरु की आवश्यक्ता है सदगुरु मिलने पर भी सदागम श्रवण करणा दुर्लभ है विगरह सुने हिताहित की खबर नहीं पड सक्ती है अगर सुन भी लीया तो सत्य पातको स्वीकार करना बडा ही मुश्किल है स्वीकार करने पर भी उस पर पाबंदो रख उस्मे पुरुषार्थ करना सबसे कठिन है। हे धराधिप । इस पृथ्वीपर केइ धर्म प्रचलित है सबमे प्राचीन और सर्वोतम है तो एक जैन धर्म है जन धर्म का तत्वज्ञान इतना उच्च कोटि का है को साधारण मनुष्य उस्मे एकदम प्रवेश होना असंभव है जैन धर्म का आचार व्यवहार भी सब से उच्च दर्जा का है अहिंसा परमो धर्मः जैन धर्म का मुख्य सिद्धान्त है यह धर्म संपूर्ण ज्ञानवाले सर्वज्ञ का फरमाग हुवा है मांस मदिर सिकार परस्त्रीगमन वैश्यागमन चौथे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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