Book Title: Oswal Porwal Aur Shreemal Jatiyo Ka Sachitra Prachin Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

Previous | Next

Page 36
________________ (३०) जैन जाति महोदय. प्र-तीसरा. के अपने मकान पर आके एक लक्ष द्रव्य पैदा करने का उपाय सोचने लगा. इधर युगराज श्रीपुंज के और उपलदे व राजकुमर के आपत्त में बोलना होनेपर श्रीपुंज ने कहा भाई एसा हुकम तो तुम अपने भुजबलसे रान जमावो तब ही चलेगा? इस ताना के मारा उपलदेव राजकुमर प्रतिज्ञा कर ली की जब हम भुज वलसे रान स्थापन करेंगे तब ही आप को मुह बतलायेंगे बस ! इसके सहायक ऊहड मंत्री विघ्रचित में बेठा ही था दोनों के आपस में बातें हो जाने से वह भि भिन्नमालनगर से निकल गया और चलते चलते रहस्तामें एक मनुष्य मीला उसने पुच्छा कुमरसाब आज किस तरफ छडाई हुई है उपलदेवने उत्तर दीया कि हम एक नया राज स्थापन करने कों नो रहे है फिर पुच्छा यह साथ में कोन है? यह हमारा मंत्रि है उस सरदारने कहा कुमर साब राज स्थापन करना कोइ बालको का खेल नहीं है आप के पास एसी कौनसी सामग्री है कि जिसके बलसे आप राज स्थापन कर सकोगे? कुमर ने कहां की हमारी भूजामे सब सामग्री भरी हुई है इसी भुज बलसे ही हम नया राज स्थापन कर सकेगे ? इस वीरता का वचन सुन सरदारने आमन्त्रण कीया की आज दिन बहुत तंग हे वास्ते रात्रि हमारे यहां विश्राम लो कल पधार जाना बहुत आग्रह होनेसे कुमर ने स्वीकार कर उस सरदार के साथ चल दीया वह सरदार था संग्रामसिंह वैराट नगर का राजा, कुमर को बडे सत्कार के साथ अपना नगरमें लाया बहुत स्वागत कर उसका शौर्य धैर्य और धीरता देख संग्रामसिंह अपनि पुत्री की सगाई उस उपलदेव कुमर के साथ कर दी रात्रि तो वहां ही रहै दूसरे दिन प्रातःसमय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78