Book Title: Oswal Porwal Aur Shreemal Jatiyo Ka Sachitra Prachin Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala
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प्राचार्य रत्नप्रभसूरि.. ( २५) हुवे दोनों आचार्यों की आज्ञावृति हजारो मुनियों पृथ्वीमण्डल पर विहारकर जैनधर्मका खुब प्रचार कर रहेथे यज्ञवादियो का नौर बहुत हट गया था पर बोंद्धोका प्रचार आगे बढ़ रहाथा के राजाओने भी बौधधर्म स्वीकार कर लीया था तथपि जैन ननताकी संख्या सबसे विशाल थी. इसका कारण : जैनमुनियो कि विशाल संख्या और प्रायः सब देशोमे उनका विहार था. दसरा जैनोका तत्वज्ञान और आचार व्यवहार सबसे उच्च कोटीका था जैन और बौद्धोका यज्ञनिषेध के विषय उपदेश मीलता जुलताही था वेदान्तिक प्रायः लुप्तसा हो गये थे. जैन और बौद्धोके वाद विवाद भी हुवा करता था.
आचार्य रत्नप्रभसूरि एकदा सिद्ध गिरि की यात्रा कर संघ के साथ आर्बुदाचल की बात्रा करी वहांपर रात्रिमें चकेश्वरी देवीने सूरिजीको विनंति करीकी हे दयानिधि ? आपके पूर्वजोने मरूभूमि मे विहार कर अनेक भव्योका कल्याण कर असंख्यात पशुओंकी बलिरूपी 'यज्ञ' जैसे मिथ्यात्व को समूलसे नष्ट कर दीया पर भवितव्यता वसात् वह श्रीमालनगरसे आगे नहीं बड सके वास्ते अर्ज है कि आप जैसे समर्थ महात्मा उधर पधारे तो बहुत लाभ होगा १ सूरिमीने देषिकी विनंति को स्वीकार कर कहा की ठीक है मुनियों को तो जहां लाभ हो वहांहो विहार करना चाहिये इत्यादि सन्मानित वचनोसे देवीको संतुष्ट कर आप अपने ५०० मुनियों के साथ मसमूमिकी तरफ विहार किया । . उपदेशपट्टन (हालमे जिसे ओशीया कहते है) की स्थापना-इधर श्रीमालनगरका राजा जयसेन जैनधर्मका पालन करता हुवा अनेक पुन्य कार्य कीया पट्टावलि नम्बर ३ मे
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