Book Title: Oswal Porwal Aur Shreemal Jatiyo Ka Sachitra Prachin Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 12
________________ (१०) जैन जाति महोदय. था ही नहीं यहां तक कि मरे हुवे जीवोंका मांस व मदिरा खाना पीना भी निषेध नहीं था. बुद्धने सबसे पहला यज्ञ कर्मके विरुद्ध में खड़ा हो उपदेश करना शरू कीया निस्का फल यह हुवा की पहलेसे ही इस निष्ठुर कार्य से लोगों में त्राहि त्राहि मच रही थी जैन धर्म के नियम एसे सख्त थे कि वह संसार लुब्ध जीवोंको पालन करना मुश्किल था रुची होने पर भी वह नियम पालन करनेमे असमर्थ जनता एकदम बुद्ध के झंडे के निचे आ गई यहां तक की केइ राजा महाराजा भी यज्ञादि कर्मसे विरक्त हो बोद्ध धर्म को स्वीकार कर लीया. इधर बौद्धोंका जौर बढ़ता देख आचार्य केशीश्रमणने अपना श्रमण संघकी एक विराट् सभा भर उनकों सचोट उपदेश कर भापुसकी फूट को देशनिकाल कर जो शिथिलता फैली हुई थी उसे दूर कर अन्यान्य देशमें विहार करने की आज्ञा दी मुनिवर्ग में भी आचार्यश्रीके उपदेशका एसा प्रभाव हुवा कि वह अपने कर्तव्य पर कम्मर कस तैयार हो गये । आचार्यश्रीने निम्न लिखित आशाएं फरमाई। ५०० मुनियों के साथ वैकुटाचार्य करणाटक तैलंगादिकी तरफ ५०० मुनियोंके साथ कालिकापुत्राचार्य दक्षिण महाराष्ट्रिय देशकी तरफ ५०० मुनियों के साथ गर्गाचार्य सिन्धु-सौवीर देशकी तरफ ५०० मुनियों के साथ जवाचार्य काशी कौशल देशके तरफ ५०० मुनियोंके साथ अन्नाचार्य अंगबंग देशकी तरफ ५०० मुनियोंके साथ काश्यपाचार्य संयुक्त प्रान्तकी तरफ ५०० शिवाचार्य अवंति देशकी तरफ इनके सिवाय थोडा थोडी संख्या भी अन्योअन्य प्रान्तोंमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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