Book Title: Nyayashiksha
Author(s): Nyayavijay
Publisher: Vidyavijay Printing Press

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Page 15
________________ न्याय शिक्षा । भावेन्द्रिय । वह प्रमाण दो प्रकारका है। प्रत्यक्ष और परोक्ष । इनमें, साक्षात् प्रतिभासी ज्ञानको प्रत्यक्ष कहा है, अर्थात् 'यह रूपरस-गन्ध-स्पर्श-शब्द-सुख-दुःख' इत्यादि रूपसे साक्षात् . परिचय, प्रत्यक्षसे होता है। वास्तवमें अगर देखा जाय तो, केवल आत्मा है निमित्त जिसकी उत्पत्तिमें,वही ज्ञान प्रत्यक्ष हो सकता है। इन्द्रिय वगैरहसे पैदा होनेवाले, चाक्षुष प्रत्यक्ष वगैरह शान तो, अनुमानकी तरह, दूसरे निमित्तसे पैदा होनेके कारण, प्रत्यक्ष नहीं हो सकते तो भी व्यवहारमें सच्ची प्रवृत्ति-निवृत्ति करानेकी प्रधानता होनेके कारण, उन चाक्षुषादि-ज्ञानोंको व्यावहारिक प्रत्यक्ष कहा है। इसीसे पाठक लोगोंको मालूम हो सकता है कि सांव्यवहारिक और पारमार्थिक ये प्रत्यक्षके दो भेद पडते हैं। इनमें सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष, छ प्रकारका है: स्पर्शन-जिहा-नासिका-नेत्र और कान, इन पांच इन्द्रियों और मनसे पैदा होनेवाला, क्रमशः स्पर्श-रस-गंध-रूप-शब्द और सुख वगैरहका प्रत्यक्ष, सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहाता है, अर्थात् पार्शन-रासन-घ्राणज-चाक्षुष-श्रावण और मानस ये छ प्रकारके प्रत्यक्ष, सांव्यवहारिक शब्दसे व्यवहृत किये जाते हैं। इन प्रत्यक्षोंमें विषय के साथ सब इन्द्रियोंकी प्राप्ति नहीं हो सकती, किंतु चक्षुको छोड दूसरी इन्द्रियां विषयके साथ प्राप्त होती हैं । चक्षु इन्द्रिय तो विषयसे दूर रहनेपर भी विषयको

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