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प्रमाणका स्वरूप।
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कार, प्रयुक्त किये जाते हैं। विशेष मात्र इतना ही है कि नयसप्तभंगी, वस्तु के अंशका प्ररूपण करनेवाली होनेसे, बिकलादेश कहलाती है । और संपूर्ण वस्तुके स्वरूपका निरूपण करनेचाली होनेसे, प्रमाण सप्तभंगी, सकलादेश कहाती है।
नयका फल भी प्रमाण की तरह है। विशेष इतना हीप्रमाणका फल, संपूर्ण वस्तु विषयक है। और नयका फल, वस्तुके एकदेश विषयक है।
हो गया प्रमाण, और नयका स्वरूप कीर्तन; अब उन दोनोंसे फल उठानेवाला प्रमाता भी, दो शब्दोंमें बतादेना चाहिये
प्रत्यक्ष आदि प्रमाणोंसे, जिसका परिचय आबाल-गोपाल प्रसिद्ध है, वह जीव, आत्मा, प्रमाता है। यह जीव, चैतन्य स्वरूप है, न कि समवाय संबंधसे उसमें चैतन्य रहा है, क्योंकि अतिरिक्त काल्पनिक समवाय माननेमें, कोई मजबूत सबूत नहीं दिखलाई देवी।
___ एवं जीव, परिणामी-का-साक्षाद भोक्ता-स्वदेह मात्र परिमाणवाला-प्रतिशरीर भिन्न-और पौलिक अष्टवाला है।
इन विशेषणोंमेंसे, प्रथम विशेषणसे, जीवमें कूटस्थ निस्यत्व, दूसरे व तीसरेसे, कापिलमत, चौथेसे जीवका व्यापकत्व, पंचमसे अद्वैतमत, और अंतिम विशेषणसे चार्वाक मतका निरास हो जाता है । 'अदृष्टवाला' इवनेहीसे, धर्माधर्मको नहीं माननेवाला चार्वाकमत, यद्यपि निरस्त होजाता, तो भी अहघटको जो 'पौगलिक' विशेषण दिया है, सो अदृष्टके विषयमें, औरोंकी भिन्न भिन्न विप्रतिपत्तियोंको दूर करनेके लिये,