Book Title: Nyayashiksha
Author(s): Nyayavijay
Publisher: Vidyavijay Printing Press

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Page 41
________________ न्याय - शिक्षा | ३ प्रतिपक्षीमें तत्त्वज्ञानका इच्छ असर्वज्ञ - जिगीषु १, स्वास्मार्मे तत्त्वज्ञानके इच्छु २, प्रतिपक्षी में तत्वज्ञान के इच्छु असर्वज्ञ ३, और सर्वज्ञ ४ के साथ ( ये चार भेद ) ४ प्रतिपक्षी में तत्रज्ञानका इच्छु सर्वज्ञ-जिगीषु १, स्वात्मामें ज्ञान के इच्छु २, प्रतिपक्षी में तत्रज्ञान के इच्छु असर्वज्ञ ३, और प्रतिपक्ष में तवज्ञानके इच्छु सर्वज्ञ ४ के साथ (ये चारभेद ) २८ इस प्रकार सोलह भेद होनेपर भी, पहिले चतुष्क-वर्गमें दूसरा, दूसरे चतुष्क वर्गमें, पहिला और दूसरा, और चौथे चतुष्क वर्गमें, चौथा भेद लोडदेने चाहिये, क्योंकि पूर्वोक्त रीतिसे, जिगीषु स्वात्मामें तवज्ञानके इच्छु के १ साथ; स्वात्मामें तत्वज्ञानके इच्छु- जिगीषु २ और स्वात्मामें तत्वज्ञान के इच्छु ३ के साथ और सर्वज्ञ - सर्वज्ञके ४ साथवादी व प्रतिवादी नहीं बन सकते, इस लिये ये चार भेद निकाल देने पर, एक एक बादि प्रतिवादिके साथ वाद होने में बाकी रहे बारह ही भेद समझने चाहियें | तथाहि बादी- जिगीषु प्रतिवादी तो, जिगीषु १, (स्वात्मामें तत्त्वज्ञानका इच्छु नहीं. प्रतिपक्षी में तत्रज्ञानका इच्छु असर्वज्ञ २, और सर्वज्ञ ३ । • वादी - स्वात्मज्ञानका इच्छु, प्रतिवादी लो, (जिगीषु नहीं, स्वात्मामें तत्त्वज्ञानका इच्छु भी नहीं ) प्रतिपक्षी में ज्ञानका इच्छु सर्वज्ञ ४, और सर्वज्ञ ५ । वादी - प्रतिपक्षीमे तत्त्वज्ञानका इच्छु, प्रतिवादी तो जीगीषु ६, स्वात्मामें तवज्ञानका इच्छु ७, प्रतिपक्षी में तत्वज्ञानका इच्छु असर्वज्ञ ८, और सर्वज्ञ ९ ।

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