Book Title: Nyayashiksha
Author(s): Nyayavijay
Publisher: Vidyavijay Printing Press

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Page 40
________________ वादका स्वरूप २७ होना- न बनना स्फुट ही है, क्योंकि ये दोनों जब तत्त्व-निर्णयके पिपासु हैं, तो इन दोनों की बाद भूमी नहीं बन सकती । बेशक! बाकी के दो कथकों के साथ उसका वाद बराबर हो सकता हूँ, क्योंकि वे, दूसरेकी आत्मामें तच्चज्ञान देनेको चाहते हैं । उनमें भी, प्रतिपक्षीमें तच्चज्ञानकी उत्पत्ति चाहने वाले अपूर्ण ज्ञानी तो, जिगीषु, स्वात्मामें तत्वज्ञान चाहनेवाले, प्रतिपक्षीमें ज्ञान चाहने वाले अपूर्ण ज्ञानी, और सर्वज्ञके साथ बराबर बाद कर सकते हैं, मगर सर्वज्ञ, सर्वज्ञके साथ वाद नहीं करते, दोनों सर्वज्ञोंका परस्पर वाद होता ही नहीं; सर्वज्ञका वाद सज्ञको छोड, उक्त तीन ही कथकों के साथ होसकता है। स्फुट मतलब --- जिगीषु १, स्वात्मा में तत्वज्ञान चाहनेवाला २, प्रतिपक्षीको तवज्ञानी बनाना चाहनेवाला क्षायोपशमिक ज्ञानी अर्थात् अपूर्ण ज्ञानी यानी असर्वज्ञ ३, प्रतिपक्षीको तत्त्वज्ञानी बनाना चाहनेवाला सर्वज्ञ ४ | ये चार प्रकारके वादी और प्रतिवादी हुए। उनमें, एक एल वादी व प्रतिवादीके बाद होनेमें सोलह भेद पडते हैं । तथाहि १ जिगीषु - जिगीषु १, स्वात्मामें तत्वज्ञान के इच्छु २, प्रतिपक्षीमें तवज्ञान होने के इच्छु असर्वज्ञ ३, और सर्वज्ञ ४ के साथ (ये चार भेद ) २ आत्मा में तत्त्वज्ञानका इच्छु- जिगीषु १, स्वात्मामें तत्त्वज्ञानके इच्छु, २, प्रतिपक्षिमें तत्त्वज्ञानके इच्छु असर्वज्ञ ३, और सर्वज्ञ ४ के साथ ( ये चार भद )

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