Book Title: Nyayashiksha
Author(s): Nyayavijay
Publisher: Vidyavijay Printing Press

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Page 36
________________ नय-तत्त्व: هههههههههههههههههمههممهههمههمهمههممههننههمه प्रमाणके ग्रहण किये हुए, अनन्त धर्मात्मक वस्तुके एक अशंको ग्रहण करने वाला और दूसरे अंशमें उदासीन रहने वाला, प्रमाता पुरुषका अभिप्राय विशेष, नय कहाता है। ____ इस लक्षणसे विपरीत, अर्थात् दूसरे अंशका प्रतिक्षेप करने वाला नय, दुर्नय-नयाभास कहाता है। .. नय, संक्षेपसे दो प्रकारका है- द्रव्यार्थिक और पर्यायार्षिक । इनमें, द्रव्यार्थिक नय तीन प्रकारका है:-नैगम-संग्रह-और व्यवहार। और पर्यायार्थिक नय चार प्रकारका है:-ऋजुसूत्र-शब्दसमभिरूढ और एवंभूत । - अब इन सातों नयोंका स्वरूप संक्षेपसे बताते हैं:नैगम-वस्तुमात्रको, सामान्य विशेष उभयात्मक मानता है, संग्रह-सामान्यमात्रका आदर करता है। व्यवहार-केवल विशेषका स्वीकार करता है। ऋजुसूत्र--वर्तमान ही निज वस्तुका आदर करता है । शब्द--अनेक पर्यायोंका वाच्यार्थ एक ही मानता है, जैसे घट-कुम्भ-कलश वगैरह शब्दोंसे कहा हुआ अर्थ एक ही है। समभिरूढ-पर्यायोंके भेदसे अर्थका भेद मानता है। जैसे घट-कुम्भ वगैरह भिन्न पर्याय शद्ध, भिन्न अर्थको कहते हैं। पर्यायोंके भेद होने पर भी अगर अर्थका भेद न होगा, तो कट, घट, पट वगैरह भिन्न पर्यायोंसे भी अर्थका भेद कैसे होगा, ऐसा, इस नयका मानना है। एवंभूत-जिस शब्दकी, प्रवृत्ति निमित्त भूत जो क्रिया है, उस क्रियामें, जब उस शब्दका अभिधेय-अर्थ, परिणत होगा,

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