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न्याय-शिक्षा ।
... इन तीन हेत्वाभासोंसे अलग कोई हेत्वाभास नहीं बचता। । यद्यपि नैयायिकोंने कालातीत और प्रकरणसम ये, दो हेत्वाभास, ज्यादह माने हैं, मगर वस्तुदृष्टया तीन हेत्वाभासोंसे कोई हेत्वाभास अलग नहीं पड सकता।
तथाहि
कालातीत, उसे कहते हैं, जहां कि साध्य, प्रत्यक्ष व आगमबाधसे बाधित रहा हो । जैसे आगमें अनुष्णत्व साधते वक्त द्रव्यत्व हेतु । यहां पर अनिमें उष्णत्व, प्रत्यक्ष प्रमाणसे मालूम पडता है । इस लिये उष्णत्वका अभाव, प्रयक्ष प्रमाणसे बाधित कहा जाता है । ऐसे बाधित स्थलके अनन्तर प्रयुक्त किया हुआ हेतु, कालातीत कहा जाता है। अब समझना चाहिये कि ऐसी जगहमें साध्य के अबाधितत्व वगैरह तीन लक्षण, साध्यमें नहीं आनेसे पहिले साध्य ही दुष्ट कहना चाहिये । द्रव्यत्व हेतु तो साध्यके साथ केवल अविनाभाव संबन्ध न रखनेके कारण, अनैकान्तिक-हेत्वाभासमें गिर पडता है। . प्रकरणसम तो हेत्वाभास ही नहीं बन सकता । अगर बने, तौ भी उक्त तीनसे अलग नहीं रह सकता । _जैनदिगंबर-विद्वानोंका माना हुआ अकिंचित्कर-हेत्वाभास भी साध्यके दोषोंसे ही गतार्थ हो जाता है।
तथाहि___ अकिंचित्कर हेतु, अप्रयोजकको कहा है । वह दो प्रकारका है-एक सिद्धसाधन, दूसरा बाधितविषय । उनमें सिद्धसाधन, उसे कहते हैं कि जिसका साध्य निश्चित हो। जैसे शदत्व हेतुसे शद्धमें श्रावणत्व साधा जाय। यहां पर बादमें