Book Title: Nyayashiksha
Author(s): Nyayavijay
Publisher: Vidyavijay Printing Press

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Page 28
________________ अनुमान-प्रमाणे । १५ श्रावणत्व, आबालगोपाल प्रसिद्ध है, अतः इसके साधनेके लिये लगाया हुआ शद्वत्व हेतु, सिद्धसाधन है। अब यहां थोडासा ध्यान दीजिये ! शब्दमें श्रावणत्व जो साध्य किया है, वह, सिद्ध यानी निश्चित होनेसे, उक्त आनिश्चितत्व वगैरह साध्यके तीन लक्षण करके युक्त न होनेके कारण, ठीक ठीक साध्य ही नहीं बन सकता । अतः यहां साध्यका दोष कहना चाहिये । हेतुने क्या अपराध किया है कि उसे दुष्ट कहा जाय ? । साध्यके दोषसे हेतुको दुष्ट कहना, यह तो बडा अन्याय है । क्योंकि दूसरके दोषसे दूसरा दुष्ट नहीं हो सकता । अन्यथा बड़ी आपत्ति उठानी पडेगी। इस लिये ऐसी जगहमें साध्य ही दुष्ट होता है। हेतु तो साध्यके साथ अविनाभाव संबंध रखनेके कारण सच्चा ही रहता है। अब रहा दूसरा बाधित विषय-वह भी कालातीतके बराबर ही समझना चाहिये । विशेषणासिद्ध और विशेष्यासिद्ध वगैरह हेत्वाभास, असिद्धमें दाखिल करने चाहिये। __ आश्रयासिद्ध और व्यधिकरणासिद्ध, ये दो तो, हेत्वाभास ही न बन सकते । क्योंकि जिस जगह पर कोई भी चीज साधनी है, वह स्थल, विकल्पसे भी सिद्ध होना जब न्याय्य है, तो फिर 'सर्वज्ञ है' ऐसी जगहमें हेतुको आश्रयासिद्ध कैसे कहा जाय ? । अन्यथा चतुरंगी महासभामें किसीके किये हुए 'खर विषाण है ? या नहीं ?' इस प्रश्नके ऊपर प्रतिवादी क्या उत्तर

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