Book Title: Nyayashiksha
Author(s): Nyayavijay
Publisher: Vidyavijay Printing Press

View full book text
Previous | Next

Page 30
________________ मागम-प्रमाण । होनेमें, 'हेतु, पक्षमें नहीं रहा है। यह कारण नहीं है, किंतु काककी कृष्णता, प्रासादकी शुक्लताके साथ अविनाभाव संबन्ध नहीं रखती है, यही कारण है । अतः व्यधिकरणासिद्ध हेत्वाभास नहीं बन सकता है। एवं अनुमानोपयोगी दृष्टान्त भी अगर अपने लक्षणसे रहित हो, तो वह दृष्टान्ताभास समझना चाहिये । इस प्रकार अनुमानप्रमाणका विवेचन हो गया । अब आगमप्रमाणके ऊपर आइये : आगम-आप्त (यथार्थ ज्ञानानुसार उपदेशक)पुरुषके बचनसे पैदा हुए अर्थ-ज्ञानको कहते हैं। उपचारसे आप्त पुरुषका वचन भी आगमप्रमाण हो सकता है। वचन क्या चीज है ? वर्ण-पद और वाक्य स्वरूप है । उनमें, ‘अकार आदि वर्ण कहाते हैं। और परस्पर सापेक्ष वर्गोंका मेल, पद कहाता है । एवं परस्पर सापेक्ष पदोंका मेल, वाक्य कहाता है । यह शब्द पौद्गलिक है, न कि आकाशका गुण, क्योंकि आकाशका गुण माननेपर, शन्दका श्रावणप्रत्यक्ष नहीं हो सकेगा। तात्पर्य यह है कि जिसका आधार अतीन्द्रिय है, उसका प्रत्यक्ष होना न्याय विरुद्ध है, वरना परमाणुके गुणोंका भी प्रत्यक्ष हो जायगा । अत एव आकाशके और गुणोंका प्रत्यक्ष, नैयायिकोंने नहीं माना है । जिस हेतुसे आकाशके और गुणों और परमाणुके गुणोंका प्रसक्ष नहीं होता है, वह हेतु आकाशका गुण मानने पर शब्दके साथ क्या संबंध नहीं रखता है, जिससे शब्दका प्रयक्ष हो सके ? । अतः शब्दको पौद्गलिक मानना न्याय प्राप्त है। शब्द, अर्थक बोध करनेमें स्वाभाविक शक्ति रखता हुआ

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48