Book Title: Niyamsara
Author(s): Kundkundacharya, Himmatlal Jethalal Shah
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 342
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates नियमसार ३१५ युगपद् वर्तते ज्ञानं केवलज्ञानिनो दर्शनं च तथा। दिनकरप्रकाशतापौ यथा वर्तेते तथा ज्ञातव्यम्।।१६० ।। इह हि केवलज्ञानकेवलदर्शनयोर्युगपद्वर्तनं दृष्टान्तमुखेनोक्तम्। अत्र दृष्टान्तपक्षे क्वचित्काले बलाहकप्रक्षोभाभावे विद्यमाने नभस्स्थलस्य मध्यगतस्य सहस्रकिरणस्य प्रकाशतापौ यथा युगपद् वर्तेते, तथैव च भगवतः परमेश्वरस्य तीर्थाधिनाथस्य जगत्त्रयकालत्रयवर्तिषु स्थावरजंगमद्रव्यगुणपर्यायात्मकेषु ज्ञेयेषु सकलविमल-केवलज्ञानकेवलदर्शने च युगपद् वर्तेते। किं च संसारिणां दर्शनपूर्वमेव ज्ञानं भवति इति। तथा चोक्तं प्रवचनसारे ‘णाणं अत्यंतगयं लोयालोएसु वित्थडा दिट्ठी। णट्ठमणिटुं सव्वं इ8 पुण जं तु तं लद्धं ।।'' गाथा १६० अन्वयार्थ:-[ केवलज्ञानिन: ] केवलज्ञानीको [ ज्ञानं ] ज्ञान [ तथा च ] तथा [ दर्शनं ] दर्शन [ युगपद् ] युगपत् [ वर्तेते] वर्तते हैं। [ दिनकरप्रकाशतापौ] सूर्यके प्रकाश और ताप [ यथा ] जिसप्रकार [ वर्तेते ] ( युगपत् ) वर्तते हैं [ तथा ज्ञातव्यम् ] उसीप्रकार जानना। ___टीका:-यहाँ वास्तवमें केवलज्ञान और केवलदर्शनका युगपत् वर्तना दृष्टांत द्वारा कहा है। यहाँ दृष्टांतपक्षसे किसी समय बादलोंकी बाधा न हो तब आकाशके मध्यमें स्थित सूर्यके प्रकाश और ताप जिसप्रकार युगपत् वर्तते हैं, उसीप्रकार भगवान परमेश्वर तीर्थाधिनाथको त्रिलोकवर्ती और त्रिकालवर्ती, स्थावर-जंगम द्रव्य-गुणपर्यायात्मक ज्ञेयोंमें सकल-विमल ( सर्वथा निर्मल) केवलज्ञान और केवलदर्शन युगपत् वर्तते हैं। और ( विशेष इतना समझना कि), संसारियोंको दर्शनपूर्वक ही ज्ञान होता है (अर्थात् प्रथम दर्शन और फिर ज्ञान होता है, युगपत् नहीं होते )। इसीप्रकार ( श्रीमद्भगवत्कुंदकुंदाचार्यदेवप्रणीत) श्री प्रवचनसारमें (६१ वी गाथा द्वारा) कहा है कि: “[गाथार्थ:-] ज्ञान पदार्थों के पारको प्राप्त है और दर्शन लोकालोकमें विस्तृत Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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