Book Title: Niyamsara
Author(s): Kundkundacharya, Himmatlal Jethalal Shah
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 355
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates शुद्धोपयोग अधिकार ३२८ अप्पसरूवं पेच्छदि लोयालोयं ण केवली भगवं। जइ कोइ भणइ एवं तस्स य किं दूसणं होइ।।१६६ ।। आत्मस्वरूपं पश्यति लोकालोकौ न केवली भगवान्। यदि कोपि भणत्येवं तस्य च किं दूषणं भवति।। १६६ ।। शुद्धनिश्चयनयविवक्षया परदर्शनत्वनिरासोऽयम्। व्यवहारेण पुद्गलादित्रिकालविषयद्रव्यगुणपर्यायैकसमयपरिच्छित्तिसमर्थसकलविमल केवलावबोधमयत्वादिविविधमहिमाधारोऽपि स भगवान् केवलदर्शनतृतीयलोचनोऽपि परमनिरपेक्षतया निःशेषतोऽन्तर्मुखत्वात् केवलस्वरूपप्रत्यक्षमात्रव्यापार-निरतनिरंजन निजसहजदर्शनेन सच्चिदानंदमयमात्मानं निश्चयतः पश्यतीति शुद्ध- निश्चयनयविवक्षया यः कोपि शुद्धान्तस्तत्त्ववेदी परमजिनयोगीश्वरो वक्ति तस्य च न खलु दूषणं भवतीति। गाथा १६६ अन्वयार्थ:-[ केवली भगवान् ] (निश्चयसे) केवली भगवान [आत्म-स्वरूपं ] आत्मस्वरूपको [ पश्यति] देखते हैं, [न लोकालोकौ] लोकालोकको नहीं-[ एवं ] ऐसा [ यदि ] यदि [ कः अपि भणति ] कोई कहे तो [ तस्य च किं दूषणं भवति ] उसे क्या दोष है ? ( अर्थात् कोई दोष नहीं।) टीका:-यह, शुद्धनिश्चयनयकी विवक्षासे परदर्शनका ( परको देखनेका ) खंडन है। यद्यपि व्यवहारसे एक समयमें तीन काल संबंधी पुद्गलादि द्रव्यगुणपर्यायोंको जानने में समर्थ सकल-विमल केवलज्ञानमयत्वादि विविध महिमाओंका धारण करनेवाला है, तथापि वह भगवान, केवलदर्शनरूप तृतीय लोचनवाला होनेपर भी, परम निरपेक्षपनेके कारण निःशेषरूपसे ( सर्वथा) अंतर्मुख होनेसे केवल स्वरूपप्रत्यक्षमात्र व्यापारमें लीन ऐसे निरंजन निज सहजदर्शन द्वारा सच्चिदानंदमय आत्माको निश्चयसे देखता है (परंतु लोकालोकको नहीं) -ऐसा जो कोई भी शुद्ध अंतःतत्त्वका वेदन करनेवाला (जाननेवाला, अनुभवकरनेवाला) परम जिनयोगीश्वर शुद्धनिश्चयनयकी विवक्षासे कहता है, उसे वास्तवमें दूषण नहीं है। प्रभु केवली निजरूप देखे और लोकालोक ना। यदि कोई यों कहता अरे उसमें कहो है दोष क्या ?।। १६६ ।। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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