Book Title: Naychakradi Sangraha
Author(s): Devsen Acharya, Bansidhar Pandit
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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१३.
किसी प्रथमें उन्होंने ग्रंथ रचनाका समय नहीं दिया है।
यद्यपि इनके किसी ग्रन्थमें इस विषयका उल्लेख नहीं है कि वे किस संघके आचार्य थे; परन्तु दर्शनसारके पढनेसे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि वे मूलसंघके आचार्य थे। दर्शनसारमें उन्होंने काष्ठासंघ, द्रविडसंघ, माथुरसंघ और यापनीयसंघ आदि सभी दिगम्बरसंघों की उत्पत्ति बतलाई है और उन्हें मिथ्याती कहा है परन्तु मूलसंघके विषयमें कुछ नहीं कहा है । अर्थात् उनके .. विश्वासके' अनुसार यही मूलसे चला आया हुआ असी संघ है ।
दर्शनसारकी ४३ वी गाथामें [१] लिखा है कि यदि आचार्य पद्मनन्दि ( कुन्दकुन्द ) सीमन्धर स्वामीद्वारा प्राप्त दिव्यज्ञान के द्वारा बोध न देते तो मुनिजन सच्चे मार्गको कैसे जानते । इससे यह भी निश्चय हो जाता है कि वे श्रीकुन्दकुन्दाचार्यकी आम्नाय में थे ।
भावसंग्रह (२) (प्राकृत) में जगह जगह दर्शसारकी अनेक गाथा उद्धृत की गई हैं और उनका उपयोग उन्होंने स्वनिर्मित गाथा - ओंकी भांति किया है । इससे इस विषय में कोई संदेह नहीं र
१ जइ पउमणंदिणाहो सीमंधरसामिदिव्वणाणेण । ण विवोह तो समणा कई सुमग्गं पयाणंति ||
२ भावसंग्रह ' माणिकचंद ग्रंथमाला ' में शीघ्र ही छपनेवाला है । प्रेसमें दिया जा चुका है ।
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