Book Title: Nanodopakhyana Author(s): Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur View full book textPage 4
________________ प्रधान-सम्पादकीय वक्तव्य प्रस्तुत ग्रन्थ का मुद्रण सन् १९५२ में हो चुका था, परन्तु किन्हीं कारणों से इसका प्रकाशन अभी तक नहीं हो सका था। प्रतः इस भूमिका के साथ इस ग्रन्थ को पाठकों के हाथों में देते हुए मुझे हर्ष और सन्तोष का अनुभव हो रहा है। इस ग्रन्थ में नन्द-कथा पर आधारित ३ काव्यों का संकलन हुआ है जिनके नाम निम्नलिखित हैं १. नन्दोपाख्यानम् २. नन्दबत्रीसी ३. नन्दनृपकथा, सहस्रऋषिकृत इनमें से नन्दबत्रीसी में कथा अत्यन्त संक्षिप्त है और उसकी भाषा भी सर्वथा शुद्ध नहीं है । पुस्तक के अन्त में पं० तत्त्वविजय गणि द्वारा इस ग्रंथ का लिखित होना बताया गया है । अन्य दो कथानकों में से सहस्रऋषि-कृत नन्दनपकथा में पूरी कथा सौ श्लोकों में समाप्त हुई है और इसके कर्ता को सियालकोट का निवासी तथा रचनाकाल संवत् १६६६ भाद्रपद बतलाया गया है, परन्तु नन्दोपाख्यान में १०६ श्लोकों के अतिरिक्त बीच-बीच में पर्याप्त गद्यांश भी मिलता है। नंदोपाख्यान के रचनाकार का नाम नहीं मिलता, परंतु प्रस्तुत ग्रंथ में संकलित नन्दोपाख्यान जिस प्रति पर प्राधारित है वह किसी देवनामक व्यक्ति द्वारा सं० १७३१ में तैयार की गई थी। इसके गद्य और पद्यभाग बड़ी ही सरल संस्कृत में लिखे हुए हैं। छोटे-छोटे वाक्य हैं और समास भी प्रायः दो पदों वाले ही हैं। व्याकरण के क्लिष्ट रूपों का सर्वथा प्रभाव है तथा कम से कम लकारों का प्रयोग हुआ है। भाषा की दृष्टि से यह प्रसाद-गुणयुक्त काव्य है । संस्कृत सीखने वाले प्रारम्भिक व्यक्तियों के लिए यह हितोपदेश से भी सरल है । नन्द की कथा नैतिक शिक्षा की दृष्टि से लिखी गई है। परनारी के प्रति कुदृष्टि रखना घातक है और 'मातृवत्परदारेषु' का सिद्धान्त ही स्वस्थ सामाजिक जोवन के लिए परमावश्यक है। मुख्यत: इसी शिक्षा को देने के लिए राजा नन्द की कथा को इन काव्यों में स्थान मिला है, साथ ही प्रासंगिक रूप में पितृभक्ति, पातिव्रत-धर्म तथा राजनोति की शिक्षा का भी समावेश यत्र-तत्र हुआ है ।Page Navigation
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