Book Title: Nadi Darpan
Author(s): Krushnalal Dattaram Mathur
Publisher: Gangavishnu Krushnadas

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शाक्तप्रमोद। दशमहाविद्याओंका और पञ्चदेवोंका पञ्चांग । सम्पूर्ण भारतनिवासि द्विजोत्तमोंपर विदित हो कि, यह अलभ्य क्लिष्टतासे प्राप्त परमगुप्त अत्युत्तम नवीन ग्रंथ हमारे यहां छपा है इसमें आदिशक्ति जगन्माताके दशोस्वरूप अर्थात् काली, तारा, त्रिपुरसुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुरभैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमलात्मिका, तथा पंच देवता दुर्गा, शिव, गणेश, सूर्य, विष्णु, और वेदोक्त, शास्त्रोक्त मंत्रोक्त, तंत्रोक्त, विस्तारपूर्वक लिखीहै जिनके चित्र (स्तबीरें) भी फोटूग्राफानुसार यथावत् खींचीगईहें इस ग्रंथका मूल्य५ मुद्रा. मनुस्मृतिः। सान्वय अत्युत्तम सरल हिंदिभाषाटीकासहित छपकर विक्रयार्थ प्रस्तुत है ऐसा उत्तम ग्रंथ अद्यावधिपर्यंत कहीं नहीं छपाथा भारतवर्षके राजा महाराजा तथा विप्रगण इसीके अनुसार राजनीति और प्रजापालन धर्मशासन करते हैं यहाँतक कि श्रीमन्महा राज अंग्रेज बहादूरभी इसका अवलम्ब लेते हैं यहग्रंथ परमसुंदर मोटे टैप् और जाडे विलायती कागजपर छपाहै की. ३ रु? श्रीमद्भागवत संस्कृत तथा भाषाटीका सहित । श्रीवेदव्यासप्रणीत श्रीमद्भागवत अठारहों पुराणोंमेसें श्रीमद्भागवत सबसे कठिनहै और इसका प्रचार भारतखण्डमें सबसे अधिक है यह ग्रंथ क्लिष्टताके कारण सर्व साधारण लोगोंको टीका होनेपरभी अच्छीरीतीसे समझना कठिनथा कोई २ स्थलमें बडे २ पण्डितोंकी बुद्धि चक्करमें उडजातीथी इसलिये विनासंस्कृत पढे सर्व साधारण पण्डित व स्वल्पविद्या जाननेवाले भगवत्भक्तोंके लाभार्थ संस्कृतमूल अतिप्रिय ब्रजभाषाटीका सहित जोकि हिन्दी भाषाओंमे शिरोमणि और माननीयहै उसी भाषामें टीका बनवाकर प्रथमावृत्ती छपायाथा ओ श्रीकृष्णचन्द्र आनन्दकंदकी कृपाकटाक्षसें बहुतही जल्दी हाथोंहाथ विकगई अब इस्की द्वितीयावृत्ती प्रथमावृत्तीकी अपेक्षा अच्छीतरह शुद्ध करवाके मोटे अक्षरमें छपायाहै और संबंधित कथाओंके शिवाय उत्तमोत्तम भक्तिज्ञानमार्गी ५०० अतीव मनोहरदृष्टांत दिये हैं कि जिनके श्रवणसे श्रोताओंका मन भावनानुसार मग्न होजाता है कागज विलायती बढियां लगायाहै माहात्म्यषष्टाध्यायी भाषाटीका सहित इस्के साथही है प्रथमावृत्तीमें मूल्य १५ रुपयाथा इस आवृत्तीमें केवल १२ वाराही रुपया रक्खाहै ज्यादा प्रशंसा बाहुमूल्यमात्रहै (दोहा) एकघडी आधीघडी, ताहूकी पुनिआध ॥ नेमसहित जो नितपढे, कटैकोटि अपराध ॥ १ ॥ गंगाविष्णु श्रीकृष्णदास "लक्ष्मीवेंकटेश्वर" छापाखाना कल्याण-मुंबई. For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 108