Book Title: Manuscripts from Indian Collection
Author(s): National Museum New Delhi
Publisher: National Museum New Delhi

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Page 22
________________ Sanskrit; dated Samvat 1444 (A.D. 1387). Authors of the text and the commentary: Yaska and Durgāchārya respectively. Begins : श्री गणेशाय नमः । आदितः पाणिनीयं तु शिक्षा ज्योतिस्ततः छन्दः । पंचाध्यायीनिघण्टोश्च निरुक्तमुपरि स्थितम् ।। प्रणम्य तत्प्रवक्ष्यामि रुद्रायामिततेजसे । स मे दिशतु सुप्रीतो वागधियोः शिष्टसम्मतिम् । समाम्नायः समाम्नातः । स व्याख्यातव्यः । Ends: गुणोऽपि गणनादेव असावपि हि ग्रन्थत एव । द्विगुणःत्रिगुण इति । निगमप्रसक्तमेतदुक्तम् । अधुनाऽऽस्य मंत्रस्य भाष्यकारः समाम्नानमाह । Colophon : एकादशोध्यायः । यावन्तो मंत्रा सर्वशाखा....."नि गुणपदानि लक्षणोद्देशतः..... सर्वांण्यपि व्याख्यातानि । संवत् १४४४ वा सी श्रा० शुसोमे.... Lent by the Vishveshvarananda Vedic Research Institute, Hoshiarpur (Punjab). KIRĀTĀRJUNIYA (A classical poem based on the Mahābhārata) Foll. 53; size 27.5 x 11 cm; paper; Devanāgari script; 12 to 13 lines to a page; Sanskrit; dated Samvat 1499 (A.D. 1442). Author : Bhāravi. Begins : नम: श्री सर्वज्ञाय ॥ श्रियः कुरूणामधिपस्य पालनी प्रजासुवृत्ति यमयुक्त वेदितुम् । स वरिणलिंगी विदित: समाययौ युधिष्ठिरं द्वैतवने वनेचरः ।। Ends : ब्रज जय रिपुलोकं पादपद्मानत: सन् गदित इति भवेन श्लाघितो देवसधैः । निजगृहमथ गत्वा सादरं पाण्डुपुत्रो धृतगुरुजयलक्ष्मीधर्मसूनुं ननाम ।। Colophon : इति किरातार्जुनीये महाकाव्ये महावैयाकरणस्य श्रीमद्भारवे किराताष्टदश : सर्ग: समाप्त: ॥ १८ सं० १४६६ पौषमासे शुक्लपक्षे नवम्यां तिथौ सोमवासरे ।। श्री ।। पासलकोट नगरे लिखितं शुभं भवतु। उपकेशगच्छोय श्री श्री श्री कक्कसूरीणां शिष्यानुशिष्यधनसारेण लिखापितं 13 Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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