Book Title: Manuscripts from Indian Collection
Author(s): National Museum New Delhi
Publisher: National Museum New Delhi

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Page 57
________________ Jain Education International १२ तिथी भौमवासरे कुरु श्री जोगिनीपुरुमहादुर्गे सुरिशरण श्री साहियालम्बुपातिसाहिराज्यवर्तमाने श्रीपाल शुभवाने श्री काष्ठासने मधुराम्यये पुष्करगणे उभयभाषा प्रवीणतपोनिधि भट्टारक श्री देवसेनदेवान् एतेषां मध्ये सर्वज्ञध्वनिनिर्गत जीवादिपदार्थ षट्द्रव्यगुण पर्याय श्रद्धापर शास्त्र दाननिरितपरोपकारीसाधु लाध सुत चौधरी राइमल तेन इदं महापुराण आदि खंड प्रष्ट सहस्त्रप्रमिदं कर्मक्षयनिमित्तं लिखापितं । जिनशासनं । सचित्र कारापितं राइमल कृतं हरिनायकायस्थ परिवारे लिखितं विष्णुदास ऊषा सुतेन ब्राह्मणेन सिष्य श्री बा. श्री जयमेर मिश्र शुभं भुयात । First part of the Mahapurana written by Pushpadanta, one of the best works of Apabhramša literature. 558 illustrations by the artist Harinätha Kayastha of the Delhi school. A striking feature of the composition is the enlarged pictorial area to cover sometimes the entire folio. Lent by the Shri Digambar Jain Atisaya Kshetra, Shri Mahavirji, Jaipur (Rajasthan). JASAHARACHARIYA (On the life of Mahārāja Yasodhara) Foll. 94; size 29x11.5 cm; paper; Devanagari script; 9 lines to a page; Apabhramsa; dated Samvat 1647 (A.D. 1590). Author: Pushpadanta. (10th century A.D.). Begins: ॐ नमः सिद्धेभ्यः ॥ श्रथ यशोधर चरित्र लिख्यते ॥ तिहुयरण सिरिकंत हो, श्रइसयवंत हो अरहंत हो हय वम्मह हो । पवित्र परमेट्ठि पविमलट्ठि गजुराहो। कोडिण्णगोत दियरामु वल्लहारिंद घर महयरासु । हो मंदिरे णिवसंतु संतु, अहिमारण मेरु कई पुप्फयतु । चित हो रणरणारी कहाए, पज्जतउ कयदुक्किय पहाए । कह धम्मविद्ध कवि कहमि कहियाए जाए लहु मोक्खु लहम्मि | 1 48 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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