Book Title: Manuscripts from Indian Collection
Author(s): National Museum New Delhi
Publisher: National Museum New Delhi

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Page 56
________________ Jain Education International Begins: Ends : Colophon संवत् १५५१ वर्षे माधवदि ७ सोमे लिखितं पालियानगरे || शुभं भवतु । The manuscript is an example of Rikta-lipi, i.e. copied in such a way that the blank space gives the designs. संजोगा विपक्स अरणगारस्स भिक्खुणो । इइ पाउक्करे बुद्ध नायए परिनिब्बुए। छत्तीसं उत्तरज्भागए भवसिद्धी सम्मएत्ति बेमि ॥ ६७॥ Lent by the Lalbhai Dalpatbhai Bharatiya Sanskriti Vidya Mandir, Ahmedabad. ĀDIPURĀŅA (Life-story of the first Jaina Tirthankara, Rishabhadeva) Foll. 344 (some missing); size 28 x 12 cm; paper; Devanagari script; 13 lines to a page; Apabhramśa; dated Samvat 1597 (A.D. 1540). Author: Pushpadanta (10th century); scribe : Vishnudasa. Begins: ॐ नमो श्री वीतरागाय ।। णमो अरिहंताणं । णमो सिद्धाणं । मो आयरियाणं । णमो उवज्झायाणं । णमो लोए सब्बसाहूणं । Ends : एसो पंच नमुक्का सब्बपावरणासरणो । मंगलारणं च सब्बेसि पढमं हवइ मंगलं । सिद्धिस मारंग परमगिरंजकमल सरस पण सासरा रिसह परमे ।। । भरहु विमविद्धमविहिकम्मधाहि फरियर किणार पवरनर पुष्पदंत गरणसंबुद्ध ।। २५ ।। इय महापुराणे तिसट्ठि महापुरसि गुणालंकारे महाकइ पुप्फयंत विरयए महाभव्व भरहासुमरि गए महाकब्बे सगणहर रिसहनाह हरिणक्वाण मरणं णाम सत्ततीसमो परिछेड समत्तो ॥ ३७ ॥ दिपेन जातरलोक मानेनाटहाणि अंकतो था ८०००। अक्षरमाचपदस्वरहीनं व्यंजन संधिविवजितरेकं । साधुभिरेष मम क्षमितव्य को न विमुह्यति शास्त्रसमुद्र ।। १ ।। Colophon धवत्सरेम श्रीनृपविक्रमादित्य राज्ये संवत् १५२० वर्ष फागुनमा शुक्लपक्षे त्रयोदश्यां 47 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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