Book Title: Manuscripts from Indian Collection Author(s): National Museum New Delhi Publisher: National Museum New DelhiPage 58
________________ Jain Education International Ends : तं माइ महासइ देवि सराइ सिसयन सं महु खयउ भडारी चिहुरणसारी पुप्फयंत जिरगवयर रूह ।। ३० ।। इय जसहर महाराय चरिये महामल्लण हरणो कइ पुष्कपत चिरइये महाकवे चंडमारिय देवय मारिदत्तराव धम्मलाहो अवि सग्ग गमरणं णाम चउत्थो संधी परिछेत्रो सम्मत्तो ॥ ६ ॥ सन्धि ४ इति यशोधरचरित्रं समाप्तं । Colophon : श्रथास्मिन् संवतु संवत् १६४७ वर्षे ज्येष्ठे सुदि तृतीयायां भूमवासरे पुनर्वसु नक्षत्रे श्री नेमिनाथालये अम्बावती वास्तव महाराजाधिराज श्री मानसिंहराज्यप्रवर्तमाने श्री मूलचे गंवाना बनाकार सरस्वती गच्छेदाचार्यान्वये भ० श्री प्रभाचंद्रदेवा तात्सिय्य मं. श्री धर्मचंद्रदेवा तत्सिष्य मं. श्री ललितकीर्तिदेवा तत्सिष्य मं. श्री चन्द्रकीर्ति देवास्तदानावे संडेलवालान्वेये गोधा गोवे सा० ठाकुर लगायें देवे प्र० डीडी द्विव लाछि तयो पुत्राः सप्त प्र० सा० श्री तेजपाल तेभायें देवे प्र० त्रिभुवनदे दिव, ल्होडी तयो पुत्रो हो प्र०... 1 70 illustrations in Rajasthani style. The manuscript was written at Amber during the reign of Raja Manasimha. Lent by the Shri Digambar Jain Atisaya Kshetra, Shri Mahavirji, Jaipur (Rajasthan). Begins: Ends : GATHĀSAPTASATI (Anthology of 700 verses by Salivāhana) Foll. 73; size 26.2 x 13 cm; paper; Maithili script, 5 to 6 lines to a page; Prākrit; dated Lakshmanasena Samvat 566 (AD 1685) Author : Salivāhana (Hala); scribe Kamalanārāyana Sarma. नमो महागणेशाय । सुवइलोरोस्सापडिमा गरिन् । चन्द्रवडा प्रभरण वश अरगं गंगा असहर ।। ३६ ।। Colophon इति श्री महाराज शालिवाहनविरचितं सप्तशत पत्रिद्गायाधिकं समाप्तम् । ५६६ भाद्रसित त्रयोदश्यां ब्रह्मपुरा ग्रामे || Lent by Patna University, Patna (Bihar). 49 For Private & Personal Use Only ल.स. www.jainelibrary.orgPage Navigation
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