Book Title: Manuscripts from Indian Collection
Author(s): National Museum New Delhi
Publisher: National Museum New Delhi

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Page 20
________________ Ends: योयं मया चिरपरिश्रमतः कथंचित् संवद्धितो जगतिकीतिलताप्ररोहः । सोयं भवेन यदि गोभिरलं खलानां छिन्नो युक्न नसा कौतुकमीक्षितः ।। Colophon: कृतिरियंवैद्यश्रीगदाधरसुतवैद्याचार्यश्रीवंगसेनस्येति ॥ संवत् १३७६ वर्षे लौकिकफाल्गुन शुदि १३ शनौ अद्य ह बीजापुरवास्तव्यनागद्रहज्ञातीय ठ० जालासुत ४० रणसिंहेन आत्मनोऽध्ययनार्थ खंडद्वयेन पुस्तकमलेखि । मंगलं महाश्रीः । शुभं भवतु । लेखकपाठकयोः । यादृशं पुस्तके दृष्टं तादृशं लिखितं मया । यदि शुद्धमशुद्ध वा मम दोषो न दीयताम् ।। Oldest dated paper manuscript in the collection. Lent by the Bhandarkar Oriental Research Institute, Poona. KUMĀRASAMBHAVA (A classical poem on the birth of Kumāra) Foll.63; size 21x8.5 cm ; paper ; Devanagari script; 8 lines to a page; Sanskrit; dated Samvat 1431 (A.D. 1374). Author: Kalidasa. Begins : ॐ नमो गणेशाय ॥ अस्त्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा हिमालयो नाम नगाधिराजः । पूर्वापरौ तोयनिधी वगाह्य स्थित: पृथिव्या इव मानदण्डः ॥ Ends: समदिवस निशीथं सङ्गिनस्तत्र शंभो: शतमगमहतूनां सार्धमेका नीशेव । न स सुरतसुखेभ्यश्छिन्नतृष्णो बभूव ज्वलन इव समुद्रान्तर्गतस्तज्जलौघः ॥ ६१ ॥ Colophon : इति कुमारसंभवे महाकाव्ये श्री कालिदासकृतौ सुरतवर्णनो नाम अष्टमः सर्ग: समाप्तः । शुभं भवतु । स्वस्ति संवत् १४३१ वर्षे द्वितीय श्रावण शुदि १४ शुक्रे मूडरठी ग्रामे राज श्री......... One of the oldest known manuscripts of this kavya. Lent by the Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur (Rajasthan). 11 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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