Book Title: Manuscripts from Indian Collection
Author(s): National Museum New Delhi
Publisher: National Museum New Delhi

Previous | Next

Page 27
________________ Jain Education International Begins : Ends : श्री रामाय नमः । रामायणमपि नावं संसारार्णवतारणम् यश्चकार मुनिः सम्यक् तस्मै वाल्मीकये नमः । इत्यार्षे रामायणे दंडकारण्ये रामोन्मादो नाम सर्गः शुभं भवतु । संवत् १७०८ वर्षे कार्तिकमासे कृष्णपक्षे नवम्यां तिथी रविवासरे मेदपाठसे ( ) - चित्रोड़गढ़े । महाराजाधिराज महाराणा श्रीजगत्सिंघजी विजैराज्य । श्री एकलिंगप्रसादात् - यादृषं ( शं) पुस्तके दृष्ट तादृषं ( शं) लिखितं मया यदि शुद्धमशुद्धं वा मम दोषो न दीयते । मंगलं लेखकानां च पाठकां (कानां च मंगलम् - मंगलं सर्वलोकानां भूमि भूपति मंगलम् । महात्मा हीरागंद लिखितं । Lines at the beginning and the end in corrupt language; 32 beautiful illustrations of the Mewar school. Lent by the Saraswati Bhawan, Udaipur (Rajasthan ). MEGHADOTA (Well-known Sanskrit lyric) Foll. 8; size 25.5x11 cm; paper; Devanagari script; 17 lines to a page; Sanskrit; dated Samvat 1726 (A.D. 1669). Author: Kalidasa; scribe: Muni Udayaharsha. Begins: Ends : Colophon कश्चित्कान्ता विरहगुरुणा स्वाधिकारात् प्रमत्तः श्रुत्वा वार्ता जलदकथितां तां घनेशोऽपि सद्यः रसपक्षमुनिशर्वरीपतिप्रमिते वर्षे मार्गशीर्षमा शुक्लपक्षकादीतियों श्री ग्रासीको मध्ये श्रीमत् खरतरगच्छेभट्टारकी मीजिनचन्द्रसूरि विजयराज्ये वाचनाचार्य श्रीहीरराजमणि पदपंकज सेवाचंचरीपं उदयहर्षसाधुभिलिखितं । छ । शिष्य चिरं० मतिविमलपठनार्थम् ॥ 5 illustrations in Mughal style; only known illustrated manuscript of the Meghadutam. Lent by the Lalbhai Dalpatbhai Bharatiya Sanskriti Vidya Mandir, Ahmedabad. MATSYAPURĀŅA Foll. 330 (some missing); size 32.5x17.5 cm; paper; Devanagari 18 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124