Book Title: Mandir Vidhi Author(s): Basant Bramhachari Publisher: Akhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj View full book textPage 7
________________ साधर्मीजनों की शुभकामनाओं के फलस्वरूप यह अगाध कार्य संभव हो सका है। मंदिर विधि के पद्यात्मक विषय दोहा, छंद, चौपाई, संस्कृत, प्राकृत के श्लोक, देवांगली पूजा, गुणपाठ पूजा, शास्त्र पूजा आदि प्रारंभ से अंत तक संपूर्ण विषय वस्तु का अर्थ लिखने का प्रयास किया गया है तथा जो-जो कठिन विषय हैं उन्हें भी अर्थ पूर्वक सरल करने का प्रयत्न हुआ है; फिर भी अल्पज्ञतावश त्रुटियाँ रह जाना संभव हैं; अत: सभी सुधीजनों से अनुरोध है जो प्रमाद वश हुई हो, शब्द अर्थ की भूल । विनय यही है सुधीजन, करें अर्थ अनुकूल ॥ प्रस्तुत प्रति की विषय वस्तु - प्रस्तुत कृति में स्वाध्यायी साधर्मीजनों एवं मंदिर विधि करने वाले विद्वत् वर्ग के लिये सुविधा की दृष्टि से दो सोपानों में विषय वस्तु को विभाजित किया गया है। प्रथम सोपान में तीन बत्तीसी, समय - समय पर उपयोग में आने वाले फूलना, ग्यारह नमस्कार, इष्ट वंदना (श्रावकाचार की चौदह गाथायें) दशलक्षण पाठ, सोलह कारण भावना, तारण स्तोत्र, महावीराष्टक दिया गया है। द्वितीय सोपान में सम्पादित मन्दिर विधि के संबंध में जिज्ञासा समाधान प्रश्नोत्तर, मन्दिर विधि प्रारंभ कैसे करें, दोनों मन्दिर विधि का क्रम, लघु एवं बृहद् मन्दिर विधि अर्थ सहित, आरती, स्तुति, प्राचीन एवं नये भजन,प्रभाती आदि आवश्यक उपयोगी विषय वस्तु समाहित की गई है। जो पर्युषण पर्व में, दैनिक नित्य नियम में, वार्षिक मेला महोत्सवों में, वेदी प्रतिष्ठा तिलक महोत्सव के अवसर या अन्य विशिष्ट अवसरों पर उपयोगी सिद्ध होगी। मंदिर विधि से संबंधित लक्षण संग्रह, भेद-प्रभेद भी दिया गया है, जिससे मंदिर विधि में आये हुए विभिन्न शब्दों के भेद-प्रभेदों के बारे में जानकारी हो सकेगी। सहयोगी साधकों, विद्वतजनों एवं साधर्मीजनों के प्रति मंदिर विधि के इस पावन कार्य में बाल ब्र.श्री आत्मानंद जी, बाल ब्र.श्री शान्तानंद जी, ब्र. श्री परमानंद जी, बाल ब्र. बहिन उषा जी का विशेष सहयोग प्राप्त हुआ, जिन्होंने हस्तलिखित एवं मुद्रित प्रतियाँ उपलब्ध कराई और इस कार्य को सहज बनाने में सहयोग किया। तारण तरण श्री संघ के अन्य साधकजनों का भी योगदान रहा। श्री डॉ.विद्यानंद जी विदिशा द्वारा ठिकानेसार की मंदिर विधि उपलब्ध करवाने एवं मंदिर विधि की एकरूपता में सक्रिय भागीदारी का निर्वाह करने रूप प्रशंसनीय सहयोग प्राप्त हुआ है। प्रतिष्ठारत्न पं. श्री रतनचंद जी शास्त्री, प्रतिष्ठाचार्य पं. श्री नीलेशकुमार जी, पं. श्री रामप्रसाद जी, वाणीभूषण पं. श्री कपूरचंद भाईजी, पं. श्री सरदारमल जी, पं. श्री वीरेन्द्रकुमार जी, पं. श्री राजेन्द्रकुमार जी, पं. श्री जयचंद जी आदि तारण समाज के सभी विद्वानों से मंदिर विधि की एकरूपता के संबंध में चर्चायें हुई हैं एवं सभी विद्वानों का सहयोग प्राप्त हुआ है। सभी श्रेष्ठी एवं विद्वतजनों के सम्मिति पत्र "संपादित मंदिर विधि लोक दृष्टि में" नामक स्वतंत्र पुस्तिका में प्रकाशित किये गये हैं। अत: अखिल भारतीय तारण समाज के सभी स्थानों पर इस मंदिर विधि के अनुसार भावपूजा विधि सम्पन्न करें। मंदिर विधि करने वाले सभी साधर्मीजनों से अनुरोध है कि मंदिर विधि की एकरूपता बनाये रखने में विशेष सहयोग प्रदान कर सभी के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करें यही मंगल भावना है। छिंदवाड़ा, दिनांक २५-१०-२०१० ब्र.बसन्तPage Navigation
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