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"ज्ञान समान न आन जगत में सुख कौ कारण । इह परमामृत जन्म- जरा - मृतु रोग निवारण ॥
इस जगत में ज्ञान के समान अन्य कोई भी पदार्थ सुख देनेवाला नहीं है। यह ज्ञान जन्म, जरा और मृत्यु रूपी रोग को दूर करने के लिए परम - अमृत है, सर्वोत्कृष्ट औषधि है । " और भी देखिए -
"जे पूरब शिव गये जाहिं अरु आगे जैहैं। सो सब महिमा ज्ञानतनी मुनीनाथ कहै हैं । आजतक जितने भी जीव अनन्त सुखी हुए हैं अर्थात् मोक्ष गये हैं या जा रहे हैं अथवा भविष्य में जावेंगे, वह सब ज्ञान का ही प्रताप है - ऐसा मुनियों के नाथ जिनेन्द्र भगवान कहते हैं ।"
सम्यग्ज्ञान की तो अनन्त महिमा है ही, पर सम्यग्दर्शन की महिमा जिनागम में उससे भी अधिक बताई गई है, गाई गई है।
क्यों और कैसे ?
मानलो रिक्शा चलानेवाला वह करोड़पति बालक अब २५ वर्ष का युवक हो गया है। उसके नाम जमा करोड़ रुपयों की अवधि समाप्त हो गई है, फिर भी कोई व्यक्ति बैंक से
१. पण्डित दौलतराम : छहढाला, चतुर्थ ढाल, छन्द ४ २. वही, चतुर्थ ढाल, छन्द ८
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मैं स्वयं भगवान हूँ