Book Title: Main Swayam Bhagawan Hu
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 18
________________ प्रतीति बिना, विश्वास बिना जान लेने मात्र से भी कोई लाभ नहीं होता । अतः ज्ञान से भी अधिक महत्त्व श्रद्धान का है, विश्वास का है, प्रतीति का है । इसीप्रकार शास्त्रों में पढ़कर हम सब यह जान तो लेते हैं कि आत्मा ही परमात्मा है ( अप्पा सो परमप्पा ), पर अन्तर में यह विश्वास जागृत नहीं होता कि मैं स्वयं ही परमात्मस्वरूप हूँ, परमात्मा हूँ, भगवान हूँ । यही कारण है कि यह बात जान लेने पर भी कि मैं स्वयं परमात्मा हूँ, सम्यक् श्रद्धान बिना दुःख का अन्त नहीं होता, चतुर्गतिभ्रमण समाप्त नहीं होता, सच्चे सुख की प्राप्ति नहीं होती । समाचार-पत्र में उक्त समाचार पढ़कर वह युवक अपने साथियों को भी बताता है। उन्हें समाचार दिखाकर कहता है कि "देखो, मैं करोड़पति हूँ अब तुम मुझे गरीब रिक्शेवाला नहीं समझना । " - इसप्रकार कहकर वह अपना और अपने साथियों का मनोरंजन करता है, एकप्रकार से स्वयं अपनी हँसी उड़ाता है। > इसीप्रकार शास्त्रों में से पढ़-पढ़कर हम स्वयं अपने साथियों को भी सुनाते हैं । कहते हैं - 'देखो हम सभी स्वयं भगवान हैं, दीन-हीन मनुष्य नहीं ।' - इसप्रकार की आध्यात्मिक चर्चाओं द्वारा हम स्वयं का और समाज का मनोरंजन तो करते हैं, पर सम्यक् श्रद्धान के अभाव में मैं स्वयं भगवान हूँ १२

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