Book Title: Main Swayam Bhagawan Hu
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 38
________________ के लिए देह की मलिनता और आत्मा की महानता के गीत गाने से काम नहीं चलेगा, देह के परायेपन और आत्मा के अपनेपन पर गहराई से मंथन करना होगा । "पल रुधिर राध मल थैली, कीकस बसादि तैं मैली | नव द्वार बहें घिनकारी, अस देह करे किम यारी ॥ कफ और चर्बी आदि से मैली यह देह मांस, खून, पीप आदि मलों की थैली है। इसमें नाक, कान, आँख नौ दरवाजे हैं; जिनसे निरन्तर घृणास्पद पदार्थ बहते रहते हैं । हे आत्मन् ! तू इसप्रकार की घिनावनी देह से यारी क्यों करता है?" " इस देह के संयोग में, जो वस्तु पलभर आयगी । वह भी मलिन मल-मूत्रमय, दुर्गन्धमय हो जायगी ॥ किन्तु रह इस देह में, निर्मल रहा जो आतमा । वह ज्ञेय है श्रद्धेय है, बस ध्येय भी वह आतमा ॥ " इस देह की अपवित्रता की बात कहाँ तक कहें ? इसके संयोग में जो भी वस्तु एक पल भर के लिए ही क्यों न आये, वह भी मलिन हो जाती है, मल-मूत्रमय हो जाती है, दुर्गन्धमय हो जाती है। सब पदार्थों को पवित्र कर देनेवाला जल भी इसका संयोग पाकर अपवित्र हो जाता है। कुएँ के १. पण्डित दौतलराम : छहढाला, पाँचवी ढाल, अशुचिभावना २. डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल : बारह भावना, एकत्व भावना मैं स्वयं भगवान हूँ ३२ ( .

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