Book Title: Main Swayam Bhagawan Hu
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 43
________________ माँगने पर झिड़कती। क्या है यह सब? आखिर वह माँ दु:खी क्यों है? क्या कहा, बेटे के अभाव में? बेटा तो सामने है। बेटे के अभाव में नहीं, बेटे में अपनेपन के अभाव में ही वह माँ परेशान हो रही है, दु:खी हो रही है। उसका बेटा नहीं खोया है, बेटा तो सामने है, बेटे की पहिचान खो गई है, बेटे में अपनापन खो गया है। मात्र पहिचान खो जाने, अपनापन खो जाने का ही यह दुष्परिणाम है कि वह अनन्त दु:ख के समुद्र में डूब गई है, उसकी सम्पूर्ण सुख-शान्ति समाप्त हो गई है। उसे सुखी होने के लिए बेटे को नहीं खोजना, उसमें अपनापन खोजना है। एक दिन पड़ोसिन ने कहा-"अम्माजी। एक बातं कहूँ, बुरा न मानना यह लड़का अभी बहुत छोटा है, इससे काम जरा कम लिया करें और खाना भी थोड़ा अच्छा दिया करें, समय पर दिया करें।" सेठानी एकदम क्रोधित होती हुई बोली-"क्या कहती हो? यह काम करता ही क्या है? दिन भर पड़ा रहता है और खाता भी कितना है? तुम्हें क्या पता-दिन भर चरता ही रहता है।" अपने में अपनापन ३७ |

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