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है, जैसे यह मेरा ही बेटा हो।" - सेठानी की बात सुनकर उत्साहित होती हुई पड़ोसिन बोली-"अम्माजी! अपने पप्पू को खोये आज आठ वर्ष हो गये हैं, अबतक तो मिला नहीं; और न अब मिलने की आशा है। उसके वियोग में कबतक दुःखी होती रहोगी? मेरी बात मानो तो आप इसे ही गोद क्यों नहीं ले लेती?"
उसने इतना ही कहा था कि सेठानी तमतमा उठी"क्या बकती है? न मालूम किस कुजात का होगा यह?"
सेठानी के इस व्यवहार का एकमात्र कारण बेटे में अपनेपन का अभाव ही तो है। वैसे तो वह बेटा उसी का है, पर उसमें अपनापन नहीं होने से उसके प्रति व्यवहार बदलता नहीं है। __अपना होने से क्या होता है? जबतक अपनापन न हो, तबतक अपने होने का कोई लाभ नहीं मिलता। यहाँ अपने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण अपनापन है। __ भाई, यही हालत हमारे भगवान आत्मा की हो रही है। यद्यपि वह अपना ही है, अपना ही क्या, अपन स्वयं ही भगवान आत्मा हैं, पर भगवान आत्मा में अपनापन नहीं होने से उसकी अनन्त उपेक्षा हो रही है, उसके साथ पराये बेटे जैसा व्यवहार हो रहा है। वह अपने ही घर में नौकर बन कर रह गया है। अपने में अपनापन
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