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बच्चे ने उत्तर दिया-"मास्टरजी कहते हैं कि स्कूल में ड्रेस पहिनकर आओ और पुस्तकें लेकर आओ। मैं पापा से कहता हूँ तो उत्तर मिलता है कि कल ला देंगे, पर उनका कल कभी आता ही नहीं है, आज एक माह हो गया। अतः आज मैं स्कूल ही नहीं गया हूँ।" ___ पुचकारते हुए सेठ बोला-"बेटा चिन्ता की कोई बात नहीं। अपना वो नालायक पप्पू है न। वह हर माह नई ड्रेस सिलाता है और परानी फेंक देता है। पस्तकें भी हर माह फाड़ता है और नई खरीद लाता है। बहुत-सी ड्रेसें और पुस्तकें पड़ी हैं। ले जावो।" __ अब जरा विचार कीजिए, सेठ जिसकी भगवान जैसी स्तुति करता है, उसे अपने नालायक बेटे के उतारन के कपड़े
और फटी पुस्तकें देने का भाव आता है और अपने उस नालायक बेटे को करोड़ों की सम्पत्ति दे जाने का पक्का विचार है। कभी स्वप्न में भी यह विचार नहीं आया कि थोड़ी-बहुत किसी और को भी दे दूँ।
अब आप ही बताइये कि जगत में अपने की कीमत है या अच्छे की सच्चे की? अच्छा और सच्चा तो पडौसी का बेटा है, पर वह अपना नहीं; अत: उसके प्रति राग भी सीमित ही है. असीम नहीं। अपना बेटा यद्यपि अच्छा भी नहीं है सच्चा भी नहीं है; पर अपना है; अपना होने से उससे राग अपने में अपनापन
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