Book Title: Mahavira ri Olkhan
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta
Publisher: Anupam Prakashan

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Page 12
________________ कुदरत रै भरुसे रैवै । अं काळ भोगयुग या भोगभूमिकाळ रै नाम सूजाणीजै। चौथै काळे दुखमासखम में धरती रै रंग, रूप, रस, गंध स्पर्श अर उपजाऊपण में कमी होणी सरू व्है। .खावरण-पीवण री चीजों री कमी पड़ जावै । कळपवृक्षां सू सगळो काम नी सरै। मिनखां रा डीलडौल, बळ, उमर सैं घट जावै अर जीवण में दुखां री प्रधानता रैवण लागै। पांचवै काळ दुखम' ताई पावतां-पावतां मिनखां रै जीवण में संघर्ष री ओरूं बढ़ोतरी व्है पर सुख नाम मातर रो रै जावै । छठ काळ दुखमादुखम में दुख प्रापरणी सीमा लांघ जावै । सुख नाममातर ई नी रैवै । इण काळ में मिनख असान्ति री आग मे वळवा लागे। पण आ स्थिति भी पळटौ खावै । काळ रो पहियो घूमै । छठे दुखमादुखम काळ सू सरू होय नै पांचवौ (दुखम) चौथो. (दुखमासुखम) काळ पावै । ओ काळ उत्तरोत्तर विकास पर बढ़ोतरी रो हुवै । इरणां रै सरुपोत रा तीन काळां में करमभूमि री अर लारला तीन काळां में भोगभूमि री व्यवस्था रैवै। अबार अवसर्पिणीकाळ रो पांचवो पारो दुखम चाले ।

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