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महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएँ
कौडिया चुरा लेता, कभी गंद, कभी कोई वस्त्र अथवा कोई माला इत्यादि । परिणामत जिन बालको की वस्तुएँ वह चुराता उनके माता-पिता प्राय रुष्ट होकर धन्य सार्थवाह से उसकी शिकायत किया करते। उसे वे लोग बहुत उपालम्भ देते, कटु वचन कहते और खेद प्रकट करते ।
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धन्य सार्थवाह को इस कारण बहुत बुरा लगा करता । वह बार-बार चिलात को समझाता और इस प्रकार की बातें करने से मना करता । किन्तु उस दासपुत्र का तो स्वभाव ही बालको की वस्तुएँ चुराने का वन गया था । अपने स्वामी की वर्जना का उस पर कोई प्रभाव नही पडा ।
जब पानी सिर से ऊपर आने लगा, अर्थात् जव चिलात बालकों की वस्तुएँ चुराता ही रहा, उन्हे चिढाता और मारता पीटता ही रहा, तब बालको ने अपने-अपने माता-पिता से उसकी गम्भीर शिकायत की।
जिनकी सहनशीलता की अब सीमा आ गई थी ऐसे वे संरक्षक धन्य सार्थवाह के घर पहुँचे और बोले
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"हे श्रेष्ठिवर आप हमारे अग्रणी है । हम सब आपका अत्यन्त सम्मान करते है । किन्तु अब हम विवश है । आपके दासपुत्र ने हमारे बच्चो को बहुत हैरान कर रखा है । अव इसका कुछ न कुछ उपाय किया ही जाना चाहिए ।"
धन्य सार्थवाह वहुत लज्जित हुए | वोले
"देवानुप्रियो । लज्जित हॅू। अनेक वार में इस दुष्ट को समझा चुका, किन्तु यह मानता ही नही । इस वार इसे अच्छी शिक्षा दूंगा । आप लोग अव निश्चिन्त रहे ।”
लोग लौट गए । सार्थवाह ने चिलात को बुलाया और कहा
"दासपुत्र । तुम बडे नीच हो । सारे समाज के सामने मुझे तुमने लज्जित किया है | अनेक वार समझाने पर भी तुम माने नही । तुम इस योग्य ही नही हो कि तुम पर दया की जाय । कुत्ते की पूँछ टेढी की टेढी ही रहती है । अत तुम इसी क्षण मेरा घर छोड़कर चले जाओ ।"
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इस प्रकार अनेक कटु शब्दो से चिलात की भर्त्सना कर सार्थवाह ने उसे दूध की मक्खी की तरह अपने घर से निकाल दिया ।