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आसक्ति और अनासक्ति
प्राचीन काल मे राजगृह नामक नगर दूर-दूर के देशो तक विख्यात था । वहाँ के निवासी सम्पन्न और सुखी थे । परिश्रमी थे इसलिए सम्पन्न
और सन्तोपी तथा सुखी थे। अनेक देशो से व्यापार करने के लिए अनेक सार्थवाह समय-समय पर राजगृह नगर से प्रयाण किया करते थे।
___ उस नगर मे धन्य नामक एक अत्यन्त धनाढ्य सार्थवाह भी रहता था। उसकी सम्पत्ति की कोई गणना नही थी। स्वभाव से भी वह अत्यन्त सरल और भला था। दीन-दुखी और दरिद्रो की वह सदा सहायता किया करता था।
धन्य सार्थवाह की पत्नी का नाम भद्रा था। उससे सार्थवाह को पाँच पुत्र प्राप्त हुए थे-धन, धनपाल, धनदेव, धनगोप तथा धनरक्षित। इनके अतिरिक्त उनके एक कन्या भी थी जिसका नाम सुँसुमा था । वह सबसे छोटी थी। यह कन्या अत्यन्त रूपवती थी और उसके शरीर मे कोई दोष नहीं था।
सार्थवाह के यहाँ चिलात नामक एक दासपुत्र था । वच्चो को खिलाने मे वह वडा निपुण था । उसके साथ बच्चे खूव हिले-मिले और प्रसन्न रहते थे। अत मुंसुमा को खिलाने के लिए उसी को नियुक्त किया गया था। वह बालिका को अपनी गोद में लेकर इधर-उधर घुमाया करता और उसे खेल मे मग्न रखा करता था ।
उन दासपुत्र चिलात के स्वभाव मे एक दोप भी था कि वह बालको की वहुत-सी वस्तुओ को चुरा लिया करता था। कभी वह किसी वालक की