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१०४ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
५९. बोंकड़िया गच्छ—इस गच्छ का नामोल्लेख १४३९ ई० से १५०५ ई० तक के ४ मति लेखों से उपलब्ध होता है।'
६०. बोंकड़या वहद गच्छ-वृहदगच्छ से सम्बन्धित इस शाखा का नामोल्लेख पनवाड़ के महावीर मन्दिर की धर्मनाथ पंचतीर्थी के १४७३ ई० के लेख में प्राप्त होता है।
६१. भीनमाल गच्छ--भीनमाल से उत्पन्न इस गच्छ का नाम भिनाय के केसरिया नाथ मन्दिर में सुविधिनाथ पंचतीर्थी पर १४५६ ई० के लेख में उपलब्ध होता है।
६२. राज गच्छ-१४४७ ई०, १४५२ ई० व १४५३ ई० के प्रतिमा लेखों में इस गच्छ का नाम देखने को मिलता है।
६३. रामसेनीय गच्छ-नागौर बड़ा मन्दिर को पद्मप्रभु पंचतीर्थी के १४०१ ई० के मूर्ति लेख में इस गच्छ का नाम है।"
६४. रुद्रपल्लीय गच्छ-१४४९ ई० से १४९६ ई० के मध्य के १२ प्रतिमा लेखों में इस गच्छ का नाम उपलब्ध है।
६५. विद्याधर गच्छ--इस गच्छ की उत्पत्ति विद्याधर कुल से हुई। नागौर बड़ा मन्दिर, कुंथुनाथ चतुर्विंशति पट्ट के १४६३ ई० के लेख में इस गच्छ का नाम है।
६६. वृत्राणा गच्छ--मेड़ता के युगादीश्वर मन्दिर की शांतिनाथ पंचतीर्थी के १४५० ई० के लेख में इस गच्छ का नाम दिया गया है।
६७. वृद्ध थारापद्रीय गच्छ--थारापद्रीय गच्छ से सम्बन्धित इस शाखा का उल्लेख १३८३ ई० व १४७० ई० के प्रतिमालेखों में देखने को मिलता है।
६८. सतीशली गच्छ-इस गच्छ का सन्दर्भ मालपुरा के मुनि सुव्रत मन्दिर की आदिनाथ पंचतीर्थी के १४७७ ई० के लेख में है।
१. प्रलेस, क्र० ३१५, ७१४, ७१६, ९१६ । २. वही, क्र० ७२५ । ३. वही, क्र० ५०९ । ४. वही, क्र० ३७९, ४४१, ४५८ । ५. वही, क्र० १८२। ६. वही, क्र० ४०१, ४३८, ४५४-४५६, ५२०, ५७०, ६६९, ७४१, ८३०, ८४०,
८७३। ७. वही, क्र०६०८ । ८. वही, क्र० ४२६ । ९. वही, क्र० १६६, ६८७ । १०. वही, क्र० ८७५ ।
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