Book Title: Madhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Author(s): Rajesh Jain Mrs
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 487
________________ ४६४ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म यहाँ के जैन ग्रन्थ भण्डार तो विश्व प्रसिद्ध हैं । पूर्वोक्त सैनिक मार्गों के मध्य के स्थानों पर शास्त्र भण्डार अधिकांशतः मुगल काल के उपरान्त ही स्थापित किये गये । धर्म की आन्तरिक विशेषताओं के साथ प्राकृतिक विशेषताओं के सामंजस्य से उभरा जैन धर्म का ऐसा स्वरूप निश्चित रूप से विलक्षण है । हुआ (ब) जैन संस्कृति के आधारभूत स्तम्भ : जैन संस्कृति के इस गरिमामय कालखण्ड का गहन अवलोकन करने के उपरान्त कुछ निष्कर्ष और आधारभूत संस्थाएँ, सुदृढ़ स्तम्भ के रूप में हमारे समक्ष उभर कर आती हैं, जिनके अभाव या दृढ़ता में कमी आने से संस्कृति का यह भव्य प्रासाद कभी भी ढह सकता था । राजस्थान में जैनधर्म के ये स्तम्भ कतिपय महत्त्वपूर्ण जैन संस्थाएँ हैं जिन्होंने सुदृढ़ नींव की भाँति आधार प्रदान कर जैन संस्कृति की गतिशीलता को संवद्धित किया है । १. जैनाचार्य या श्रमण वर्ग : 'श्रमण' शब्द समभाव, श्रमशीलता और वृत्तियों के उपशमन का परिचायक है । जैन संघ के संगठन में साधु-साध्वी वर्ग पूर्णतः वीतरागी, निस्पृह, निःस्वार्थ, शास्त्रोक्त कठोर एवं मर्यादित जीवन व्यतीत करने वाला एक तपःपूत एवं पादविहारी समुदाय है, जिसको सम्पूर्ण भारत के किसी भी धर्म के संन्यासी वर्गं से तुलना करने पर मूर्तिमंत तीर्थ की संज्ञा से अभिहित करने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है । कथनो एवं करनी में एकरूपता रखकर नित्य उपदेश देने वाला निग्रंथ, अनागार, असुरक्षित, भिक्षुक, अपनी ही श्रम साधना पर जीवित एवं लोक कल्याणार्थ समर्पित जीवन लिये, यह अपरिग्रही समुदाय परिग्रही श्रावक समाज को नैतिक एवं आध्यात्मिक उन्नयन, परोपकारी चिंतन, सात्विक जीवन तथा धर्म की कलापूर्ण, पवित्र एवं शाश्वत निर्मितियों के सर्जन के लिये निरन्तर उद्बोधित करता रहा । समाज से न्यूनतम लेकर अधिकतम देना ही इनका जीवनोद्देश्य रहा | समाज के निम्नतम वर्ग से लेकर राजा और सम्राट् तक का भी समपूज्य यह वर्ग, जन जीवन के निकट सम्पर्क में रहकर, सहज, सरल एवं ग्राह्य लोकभाषा में, मनोरंजक कथाओं के माध्यम से आध्यात्म के गूढ़ तत्त्व को उपदेशितः करता रहा । लोकमानस व जनजीवन से लेकर राजमहलों के अंतरंग परिप्रेक्ष्य तक के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक व ऐतिहासिक तथ्यों को यह वर्ग अपनी विद्वत्ता से आकलित कर लोकभाषा में कलात्मक रूप से निबद्ध कर साहित्य सृजन करता रहा । इन्होंने भविष्य दृष्टि रखकर, अनागत विध्वंस को भांपकर महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की असंख्य प्रतिलिपियाँ तैयार करवाई और उनकी सुरक्षा के समुचित प्रबन्ध हेतु शास्त्र भण्डार निर्मित करवाये । यह वर्ग सदैव प्रेरणा केन्द्र रहा। जैन अभिलेखों में सर्वत्र किसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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