Book Title: Madhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Author(s): Rajesh Jain Mrs
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 495
________________ ४७२ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म ऐतिहासिक राज्य कई वर्षों तक इनके पास गिरवी रहा । इन्होंने कई तीर्थयात्रा संघ निकाले व अपने समय में दो करोड़ से अधिक रुपया दान-पुण्य में व्यय किया तथा दो करोड़ से अधिक रुपया आवास व धार्मिक भवनों के निर्माण में व्यय किया । जैसलमेर में इनके द्वारा बनवाये गये महल व हवेलो शिल्प की दृष्टि से आज भी अद्भुत है।' राजस्थान में अनेकों महत्वपूर्ण श्रेष्ठी प्रत्येक काल में अस्तित्व में रहे । 'कान्हड़दे प्रबंध' में जालौर के बड़े-बड़े व्यापारियों के उल्लेख है। चित्तौड़ में भामाशाह का श्वसुर अतुल संपत्ति का स्वामी था। भामाशाह का पिता भारमल १८ करोड़ का स्वामी व भारत प्रसिद्ध सेठ था। भामाशाह स्वयं ने अपनी अतुल संपत्ति मातृभूमि की रक्षार्थ राणा प्रताप को अर्पित कर दी । मध्यकाल के अन्य उल्लेखनीय जैन श्रेष्ठी-चंद्रावती निवासी धरणिग, कवीन्द्र बंधु यशोवीर, श्रेष्ठी यशोराज, नागपुरीय बरहड़िया, नागर श्रेष्ठी, बेसठ श्रेष्ठी, राल्हा, समधा, धांधल, जेल्हा, रामदेव नवलखा, वीसल गुणराज, धरणाशाह आदि हैं। औद्योगिक क्षेत्र में भी जैनों का वर्चस्व था । राजस्थान में उद्योग का प्राचीनतम केन्द्र बसंतपुर माना जाता है। यहाँ के जैनधर्म संघ ने सर्वप्रथम जैतक के नेतृत्व में जावर की खानों में उत्खनन का कार्य प्रारम्भ किया था, जहाँ से चाँदी, जस्ता और सीसा निकाला जाता था। जैतक संसार का पहला खनिज अभियन्ता, श्रमिक नेता और सहकार धर्मी था । जैनधर्म के इस मुखिया ने जावर में चन्द्रिका देवी का विशाल मन्दिर बनवाया था व १८ प्रदेशों के उत्खनन विशेषज्ञ बुलाये थे। वितल में उत्खनन करने के कारण इन्हें उस समय वैतालिक कहा जाता था, जिसका अपभ्रंश रूप जैन समाज की वर्तमान वैताला जाति है। संसार में सर्वप्रथम पीतल की देन इसी जावर खान को है । यहाँ तांबा व जस्ता एक साथ मिलता था, जिनके मिश्रण से पीतल बनता है। यहां के पीतल को ढली हुई मूर्तियां आज भी पिंडवाड़ा में विद्यमान हैं । जैना. चार्य हरिभद्रसूरि ने बसंतपुर का प्रमुख जैन तीर्थ एवं व्यापारिक केन्द्र के रूप में उल्लेख करते हुए लिखा है कि यहाँ के देश प्रसिद्ध व्यापारी दक्षिण में क्षितिप्रतिष्ठानपुर और पूर्व में चंपा जैसे सुदूर भागों में जाकर व्यापार करते थे और वे अत्यन्त धनाढ्य थे । लगभग १६ वीं शताब्दी तक बसंतपुर एक प्रमुख व्यापारिक नगर था। जैन श्रेष्ठियों, व्यापारियों, साहूकारों या महाजनों की भूमिका व्यापारिक क्षेत्र में शीर्षस्थ रही। बड़े व्यापारियों का कार्य कृषि उत्पादन की वस्तुओं का निर्यात तथा १. बलवंत सिंह मेहता, जैसरा, ५० ३५३ लेख-राजस्थान को समृद्धि में जैनियों का योगदान २. वही ३. वही, पृ० ३५४ ४. वही, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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