Book Title: Madhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Author(s): Rajesh Jain Mrs
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 493
________________ ४७० : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म भक्ति, राजनीति, कूटनीति, अर्थनीति, युद्धनीति आदि के द्वारा तत्कालीन राज्य प्रबंध व इतिहास निर्माण में अपूर्व योगदान दिया । इसकी पुष्टि अनेकों अभिलेखों, ताम्रपत्रों, रुक्कों, पट्टे - परवानों, ग्रन्थों, वंशावलियों, ख्यातों व भाटों की बहियों आदि से होती है । सामान्यतः इनकी योग्यताओं से प्रभावित होकर इन्हें सर्वोच्च पदों पर नियुक्त किया जाता था। इनके प्रति शासकों के अगाध विश्वास का अनुमान इन्हीं तथ्यों से लगाया जा सकता है कि अधिकांश को पीढ़ी दर पीढ़ी उन्हीं पदों पर रखा गया, खजानों की चाबियाँ उनके पास रहने दीं, सामरिक महत्व के किले व नेतृत्व में सौंपा, सेनानायकों के पद पर नियुक्त कर शत्रु के विरुद्ध संचालन का दायित्व दिया, सुलह व संधिवार्ताओं तथा राजकाज के कामों में भी जैन समुदाय की सेवाएं बड़े पैमाने पर प्राप्त कीं । गढ़ों को उनके संघर्ष में सैन्य - अन्य छोटे बड़े मध्यकाल के ऐसे जैन गौरवपात्र मेवाड़ राज्य में जालसी मेहता, भारमल्ल, भामाशाह एवं ताराचन्द, रंगोजी, बोलिया, सिंघवी दयालदास, मेहता अगरचन्द तथा मेहता मालदास, प्रधान एवं दीवान पदों पर नवलखा रामदेव, नवलखा सहणपाल, तोलाशाह, कर्माशाह, बोलिया निहालचंद, कावड़िया भामाशाह, कावड़िया जीवांशाह अक्षयराज, दयालदास आदि, जोधपुर राज्य में राव समरा एवं नरा भण्डारी, मुहणोत नेणसी, सिंधी इन्द्रराज ; प्रधान एवं दीवान पद पर भंडारी परिवार के कई वंशज, बीकानेर राज्य के मेहता कर्मचन्द्र बच्छावत, वेद मेहता, महाराव हिन्दूमल व कई दीवान, किशनगढ़, सिरोही, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा, झालावाड़ आदि में भी कई रहे हैं ।" जयपुर राज्य में भी जैन दीवानों की लंबी परंपरा रही है, जिनमें रामचंद्र छाबड़ा, दीवान किशनचंद्र, भीमसिंह, महामंत्री मोहनदास, कल्याण दास, अजीतदास, संघी हुकमचंद झुंथाराम, श्योजीदास, अमरचंद, बालचंद छाबड़ा आदि कई उल्लेखनीय हैं । २ ८. आर्थिक उन्नयन में योगदान : राजस्थान की आर्थिक धुरी प्राचीन काल से ही जैन श्रेष्ठी वर्ग रहा है । सामान्यतः जैन मतावलंबियों का मुख्य कर्म 'व्यापारे वसति लक्ष्मी' के आधार पर वाणिज्य एवं व्यापार रहा है। पूर्व मध्यकाल व मध्यकाल में भी ग्रामीण क्षेत्र के कतिपय श्रावकों का मुख्य कर्म कृषि ही रहा किन्तु इसमें हिंसा का कुछ अंश देखकर अन्य जातियों से यह कर्म करवाया जाने लगा व स्वयं कृषि पदार्थों का विपणन करने लगे । जैन मत में खेतपालिया, न्याती, भंडशाली, संचेती, कोठारी आदि गोत्र कृषि कर्म से संबंधित माने गये है । १. देवकोठारी, जैसरा, पृ० ३०७-३३१, लेख 'देशी रियासतों के शासन प्रबंध में जैनियों का सैनिक व राजनैतिक योगदान' २. भँवरलाल जैन, जैसरा, पृ० ३३२-३३९ लेख 'जयपुर के जैन दीवान' ३. बलवंत सिंह मेहता, जैसरा, पृ० ३५०, लेख --- राजस्थान की समृद्धि में जैनियों का योगदान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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