Book Title: Madhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Author(s): Rajesh Jain Mrs
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 475
________________ ४५२ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म मन्दिर में १५ ग्रन्थ हैं । यहाँ एक ग्रन्थ कन्नड़ भाषा का भी है। प्राकृत एवं संस्कृत के भी कुछ ग्रन्थ है । यहाँ की प्रमुख पांडुलिपियाँ पन्नालाल संघी कृत 'पंचकल्याणक पूजा', सोमप्रभाचार्य कृत संस्कृत में 'सूक्ति मुक्तावली भाषा' आदि हैं। अधिकांश कृतियां १५वीं शताब्दी की हैं। १९. दिगंबर जैन मंदिर शास्त्र भण्डार, सांभर : धानमंडी के जैन मंदिर में स्थित एकमात्र भण्डार में ८६ हस्तलिखित ग्रन्थ हैं। प्राचीनतम पांडुलिपि अखयराज श्रीमाल के 'चौदह गुणस्थान स्वरूप' की है, जो १६८४ ई० की है । दयानतराय के 'चरचाशतक' की सुन्दर पांडुलिपि टब्बा एवं टीका सहित है। सांभर के लिपिकार पं० रामलाल ने १५ से भी अधिक पांडुलिपियाँ लिखकरे इस भण्डार में संग्रहीत की हैं। २०. दिगंबर जैन मन्दिर शास्त्र भण्डार, दुद् : इम मन्दिर के शास्त्र भण्डार में १०० से भी अधिक हस्तलिखित ग्रन्थ हैं जिनमें हिन्दी एवं संस्कृत की सर्वाधिक पांडुलिपियाँ हैं । २१. जैन शास्त्र भण्डार, झुंझुनू : यहाँ ग्रन्थों की कुल संख्या ३१० है। यहाँ के मुख्य ग्रन्थ युग प्रधान जिनचंद्र सूरि कृत 'अभयकुमार चौपाई', हेमराज कृत 'पांचसिद्धि', टीकमचन्द कृत 'हेमराज बच्छराज चौपई' आदि हैं । यहाँ के यति खरतरगच्छ के उपासरे में भी ५०० ग्रन्थ है। २२. ग्रन्थ भण्डार, मारोठ : यहाँ साहजी जैन मन्दिर के शास्त्र भण्डार में ३०६३ से भी अधिक ग्रन्थ हैं किन्तु उनमें से अधिकांश नष्ट हो गये । वर्तमान में तेरापंथी जैन मन्दिर में केवल २०० ग्रन्थ ही सुरक्षित हैं। २३. दिगंबर जैन अग्रवाल मन्दिर का शास्त्र भण्डार, : फतेहपुर ( शेखावाटी ) इस भण्डार में ४०० ग्रन्थ हैं। इनमें एक महत्त्वपूर्ण बड़ा गुटका भी है जिसमें १२२२ पृष्ठ एवं १ लाख श्लोक हैं तथा ज्योतिष व आयुर्वेद के पाठ संग्रहीत हैं । यह गुटका जीवनराम ने २२ वर्ष की सतत् साधना के उपरान्त १७०३ ई० में समाप्त किया था। इस भण्डार में णमोकार महात्म्य कथा' को एक सचित्र पांडुलिपि है, जिसमें ७६ चित्र हैं । यहाँ राजस्थानी व हिन्दी के कई ग्रन्थ प्रथम बार उपलब्ध हुए हैं जिनमें प्रमुख 'त्रिलोकसार भाषा', 'हरिवंश पुराण', 'महावीर पुराण', 'समयसार नाटक', ज्ञानार्णव' आदि हैं। २४. दिगंबर जैन मन्दिर का शास्त्र भण्डार, दूनी : यहाँ के ग्रन्थ भण्डार में १४३ ग्रन्थ हैं । प्राचीनतम पांडुलिपि १४४३ ई० की लिखी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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