Book Title: Madhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Author(s): Rajesh Jain Mrs
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 479
________________ ४५६ : मध्यकालीन राजस्थान में नधर्मजै ३. यति बालचन्द्र वैद्य का संग्रह, चित्तौड़ : ___ इसमें हस्तलिखित ग्रन्थों की कुल संख्या १००० है। इनमें मन्त्र शास्त्र, स्तोत्र, औषधि, ज्योतिष, आगम एवं धार्मिक तथा साहित्यिक ग्रन्थों की बहुलता है । यह भण्डार १३८४ ई० में पण्डित विनयचन्द ने स्थापित किया था। ४. भट्टारक यशकीति जैन सरस्वती भवन, धुलेव (केसरियाजी) यहाँ के शास्त्र भण्डार में गुटकों सहित १०७० हस्तलिखित ग्रन्थ हैं। प्राचीनतम पाण्डुलिपि १३५९ ई० में लिखित 'संग्रहणी सूत्र' बालावबोध है। यहाँ राजस्थानी, मेवाड़ी व हिन्दी के १५वीं एवं १६वीं शताब्दी में रचित ग्रन्थ अधिक है। प्रमुख निम्न है-पद्म कवि का ‘महावीर रास' ( १५५२ ई० ), 'नरसिंहपुरा जाति रास', रत्नचंद्र कृत 'शान्तिनाथ पुराण' ( १७२६ ई०), महीचन्द्र कृत 'लवकुश आख्यान', ब्रह्मगुणराज का 'प्रद्युम्नरास' (१५४९ ई०) आदि । प्राचीन ग्रन्थों में आशाधर द्वारा १४८४ ई० में संस्कृत में रचित 'धर्मामृत पंजिका', सकल कीति द्वारा १४९४ ई० में संस्कृत में रचित 'शान्तिनाथ परित', सकल भूषण कृत 'उपदेश रत्नमाला', संस्कृत भाषा में काष्ठा संघ की पट्टावली, प्रभाचन्द्र का १६४९ ई० का 'तत्वार्थ रत्न प्रभाकर', नरेन्द्र सेन की १३९९ ई० की 'महाभिषेक विधि' बादि है। (द) कोटा संभाग : कोटा, बूदी, झालावाड़, हाड़ौती प्रदेश के नाम से विख्यात हैं। जैन धर्म एवं संस्कृति का इतिहास यहाँ काफी प्राचीन है। बदी, नैणवा एवं पाटन का प्राचीन ग्रन्थों में भी नाम मिलता है। १. (क) खरतरगच्छोय शास्त्र भण्डार, कोटा : इस भण्डार में १५वीं से १७वीं शताब्दी के मध्य रचित १११७ हस्तलिखित ग्रन्थ है तथा आगम, सिद्धान्त, पुराण एवं रासों ग्रन्थों की अधिकता है। प्राचीनतम पाण्डुलिपि १३५८ ई० की रचित 'रामलक्ष्मण रास' है । यहाँ पर 'बीसलदेव चौहान रास' अपूर्ण अवस्था में है। इसके अतिरिक्त उल्लेखनीय ग्रन्थ यशोविजय कृत 'श्रीपाल रास' ( १३८८ ई० ), मुनि कुशल सिंह कृत 'नन्दराज चौपई' (१३७९ ई०), संस्कृत में नयचन्द्र कृत 'हम्मीर महाकाव्य' (१४२९ ई० ) हैं। इस भण्डार में 'कल्पसूत्र' की एक स्वर्णांकित प्रति भी है, जो १४७३ ई० में लिखी गई थी। (ख) वीरपुत्र आनन्द सागर ज्ञान भण्डार, कोटा : इस भण्डार में ४१५ हस्तलिखित ग्रन्थ संग्रहीत हैं। अधिकांश ग्रन्थ १७वीं से १९वी शताब्दी के मध्य प्रतिलिपिकृत हैं। इस भण्डार की प्राचीनतम पाण्डुलिपि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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