Book Title: Madhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Author(s): Rajesh Jain Mrs
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 427
________________ ४०४ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म टीकाएँ बनाई । शिवनिधान उपाध्याय ने १६२३ ई० में 'लघु संग्रहणी' और 'कल्पसूत्री बालावबोध', १६३५ ई० में सांगानेर में 'गुणस्थान गर्भित जिन स्तवन' नामक रचना पर बालावबोध लिखा । इन्होंने सुप्रसिद्ध काव्य 'कृष्ण रुक्मणी री वेलि' पर भी बालबोध भाषा टीका बनाई । इसी काव्य पर जयकीर्ति ने भी १६२९ ई० में बालावबोध लिखा । जयकीर्ति ने १६३६ ई० में जैसलमेर के थारूशाह की अभ्यर्थना पर 'षडावश्यक - बालावबोध' भी लिखा । विमलरत्न ने १६४५ ई० में 'वीर चरित्र बालावबोध', श्रीपाल ऋषि ने १६०७ ई० में 'दशवैकालिक बालावबोध', कनकसुन्दरगणो ने १६०९ ई० में 'दशकालिक बालावबोध' और 'जाताधर्मसूत्र बालावबोध' की रचना की । रोमचंद्र सूरि ने 'कल्पसूत्र बालावबोध', मेघराज ने 'राजप्रश्नीय समवायांग उत्तराध्ययन औपपातिक क्षेत्र समास बालावबोध' और 'साधु समाचारी' की रचना की । १६१९ ई० में उदयसागर ने उदयपुर में 'क्षेत्रसमास बालावबोध', राजचंद्र सूरि ने 'दशवैकालिक बालावबोध' तथा हर्षबल्लभ उपाध्याय ने १६१२ ई० में 'उपासकदशांग बालावबोध' की रचना की । सूरचंद्र ने 'चातुर्मासिक व्याख्यान' १६०७ ई० में, मतिकीर्ति ने 'प्रश्नोत्तर' १६३४ ई० में जैसलमेर में, कमललाभ ने 'उत्तराध्ययन बालावबोध' १६१७ ई० और १६३२ ई० के बीच में रचा । कल्याणसागर ने 'दानशील- तप-भाव तरंगिणी" की रचना १६३७ ई० में उदयपुर में की। नयविलास ने 'लोकनाल बालावबोध' की रचना की । २ कुशलधीर ने १६३९ ई० में पृथ्वीराजकृत ' कृष्ण रूक्मणी री वेलि' पर बालावबोध और १६६८ ई० में 'रसिक प्रिया' पर बालावबोध जोधपुर में निबद्ध किया । जिनहर्ष ने लक्षाधिक पद्य रचनाओं के अतिरिक्त गद्य में 'दीवाली कल्प बालावबोध', 'स्नात्रपंचाशिका', 'ज्ञान पंचमी' और 'मौन एकादशी पर्व कथा बालावबोध' की रचना की । १६७९ ई० में सगुणचंद्र ने 'ध्यानशतक बालावबोध' की रचना जैसलमेर में की लाभवर्धन ने 'चाणक्य नीति' और 'सुभाषित' ग्रन्थ पर टब्बा लिखा । १६७४ ई० में पंडित रत्नराज के शिष्य रत्नजय द्वारा छठें 'अंगसूत्र' पर टब्बा लिखा हुआ मिलता है । इन्होंने 'कल्पसूत्र' और संस्कृत वैद्यक ग्रन्थ 'योग चितामणि' पर बालावबोध तथा 'सप्तस्मरण टब्बा' भी लिखा । १६९३ ई० में उपाध्याय लक्ष्मीबल्लभ ने बीकानेर के महाराजा पृथ्वीराज के सुप्रसिद्ध काव्य 'पृथ्वीराज वेलि' पर टीका लिखी । कमल हर्ष के शिष्य विद्या विलास ने १६७१ ई० में 'कल्पसूत्र बालावबोध' की रचना की । अभयकुशल ने 'भतृहरि शतक बालावबोध' की रचना १६९८ ई० में की । ज्ञानचंद्र के शिष्य १. राजैसा, पृ० २२६-२३२ । २ . वही । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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