Book Title: Madhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Author(s): Rajesh Jain Mrs
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 444
________________ जैन शास्त्र भंडार : ४२१ भरतपुर, कामा, बयाना, बसवा, दौसा आदि के ग्रन्थ भण्डार भूमिगत होने से ही सुरक्षित बचे रह सके । तहखानों में दरवाजे के स्थान पर प्रस्तर पट्टिका इस प्रकार रखी जाती थी कि पीछे कक्ष होने का आभास भी नहीं हो पाता था । ३. शास्त्र भण्डारों के ग्रन्थ मुख्यतः ताड़पत्र, भोजपत्र, वस्त्र, कागज एवं ताम्रपत्रों पर रचित मिलते हैं । १३वीं शताब्दी के पूर्वं कागज की उपलब्धि लगभग नगण्य थी । जैसलमेर के ग्रन्थ भण्डार में संवतोल्लेख वाला प्राचीनतम ग्रन्थ १०६० ई० का " ओध नियुक्ति वृत्ति" ताड़पत्र पर ही लिखा हुआ है । जैसलमेर प्राचीन ताड़पत्रीय ग्रन्थों की विपुलता की दृष्टि से विख्यात है । ये ग्रन्थ सामान्य स्याही, स्वर्णिम स्याही और चित्रांकित -- ३ प्रकार के मिलते हैं । चित्रपट, यंत्रपट एवं छोटे स्तोत्र या प्रार्थना लेखन के लिये वस्त्र के फलक प्रयुक्त होते थे। जयपुर के पार्श्वनाथ जैन मन्दिर में " प्रतिष्ठा पाठ" की एक पांडुलिपि वस्त्रांकित है जो १७वीं शताब्दी में लिखी गई थी । जैन भूगोल के तीन विश्व जम्बूद्वीप, अढ़ाई द्वीप व विदेह क्षेत्र के मानचित्रों के वस्त्र पट कई ग्रन्थ भण्डारों में हैं । कागज पर रचित १३वीं शताब्दी से पूर्व का कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं होता । कागज पर रचित ग्रन्थ स्वर्णिम व रजत स्याही में लिखित तथा चित्रित च अलंकृत भी मिलते हैं । ऐसे ग्रन्थ सामान्यतः श्वेताम्बर ग्रन्थ भण्डारों में हैं । " कल्पसूत्र” की स्वर्णिम स्याही से अंकित व प्रचुर अलंकरण युक्त प्रति की कीमत १ लाख रुपये से भी अधिक है । काष्ठ फलक व ताम्रपत्रों पर अंकित पांडुलिपियाँ संख्या में बहुत कम हैं। मंदिरों में अधिकांश यन्त्र ताम्रपत्रों पर ही उत्कीर्ण मिलते हैं । कुछ मंदिरों में स्वर्णपत्रों व रजत-पत्रों पर उत्कीर्ण यन्त्र भी हैं । ४. शास्त्र भण्डारों में प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत, राजस्थानी व हिन्दी भाषा साहित्य अपने विविध स्वरूपों में उपलब्ध है । इनमें केवल धार्मिक साहित्य ही नहीं है, अपितु काव्य, पुराण, ज्योतिष, आयुर्वेद, गणित, भूगोल आदि विषयों पर भी ग्रन्थ हैं । सामान्य अभिरुचि के विषय कथा, कहानी एवं नाटक भी अच्छी संख्या में हैं । मुस्लिम शासनकाल में भट्टारकों ने अपभ्रंश भाषा के ग्रन्थों का अच्छा संग्रह किया और उनकी पांडुलिपियाँ नकल करवाई | राजस्थान के अतिरिक्त अन्य प्रदेशों के शास्त्र भण्डारों में अपभ्रंश के ग्रन्थ या तो मिलते ही नहीं हैं या स्वल्प संख्या में हैं । अपभ्रंश ग्रन्थों की दृष्टि से नागौर, अजमेर, जयपुर के भण्डार सर्वाधिक महत्त्व के हैं । इनमें अपभ्रंश का ९५ प्रतिशत साहित्य संग्रहीत है । ५. ग्रन्थों के अतिरिक्त शास्त्र भण्डारों में उपलब्ध गुटके भी काफी महत्त्वपूर्ण हैं । इनमें विविध प्रकार की साहित्यिक और जीवनोपयोगी सामग्री का संग्रह किया जाता था। इनमें विविध विषयों के तथ्य हैं, जैसे-एक गुटके में भारत के भौगोलिक विस्तार का परिचय देते हुए १२४ देशों के नामों की सूची है' । एक अन्य गुटके में १. राजैसा, ४, पृ० ६७१, ग्रन्थ संख्या ५५०६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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