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मूर्तियां भी यहां उत्कीर्ण हैं । द्वार के ऊपर मध्य में आदिनाथ भगवान की व पार्श्व भागों पर तीर्थंकर प्रतिमायें उत्कीर्ण हैं । द्वार के दोनों कोनों पर 6-6 दिगंबर मुनि तीर्थंकरों की वंदना करते उकेरे गए हैं। छत पर बना पद्म-पुष्प, कला का अनुपम नमूना है।
गर्भगृह की बाह्य भित्तियों पर शिशु को दुलार करती वात्सल्यमयी मां, पति को पत्र लिखने में मग्न स्त्री, अंगड़ाई लेती स्त्री, आंखों में अंजन लगाती स्त्री, माथे पर कुमकुम लगाती, मांग में सिंदूर भरती, दर्पण में रूप निहारती व अंगिया के बंध बांधती स्त्री की प्रतिमायें कला के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं । ऐसी अनुपम व सुंदर कला के नमूने यहां एक नहीं, दो नहीं, तीन-तीन पट्टिकाओं पर उत्कीर्ण देखने को मिलते हैं; जो दर्शक को मंत्रमुग्ध कर देते हैं ।
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13. आदिनाथ जिनालय - इस जिनालय में लगभग 6 फीट ऊँची खजुराहो की सबसे विशाल पद्मासन मुद्रा में आसीन भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा आसीन है । सिंहासन के छोरों पर भगवान के यक्ष-यक्षिणी की मूर्तियां लांछन चिह्न के साथ उत्कीर्ण हैं । शिरोभाग के पीछे अलंकृत प्रभामंडल बना है। परिकर में कायोत्सर्ग मुद्रा में तीर्थंकर मूर्तियों तथा बादलों की पृष्ठभूमि में आकाशगामी गंधर्व युगलों का अंकन भी किया गया है। भगवान की केश- रचना विशेष आकर्षक है। 14. श्रेयांसनाथ जिनालय - लगभग 2 फीट 7 इंच ऊँची कायोत्सर्ग मुद्रा में मूलनायक के रूप में भगवान श्रेयांसनाथ की प्रतिमा इस जिनालय में विराजमान है। प्रतिमा के पार्श्व भागों में बाहुबली व मुनिसुव्रतनाथ भगवान की कायोत्सर्ग मुद्रा में मूर्तियां विराजमान हैं।
15. इस जिनालय में तीन प्रतिमायें विराजमान हैं जिनमें से एक प्रतिमा पर प्रतीक चिह्न नहीं है । एक प्रतिमा भगवान महावीर स्वामी की इस जिनालय में विराजमान है। दो प्रतिमाओं पर उनके यक्ष-यक्षिणी बनें हैं ।
16. त्रिमूर्ति जिनालय इस जिनालय में 11वीं सदी में स्थापित भगवान नेमिनाथ, पार्श्वनाथ व महावीर स्वामी की प्रतिमायें कायोत्सर्ग मुद्रा में विराजमान हैं । अर्धमंडप के बाहरी भाग में गज आकृतियां भी बनीं हैं। ये आकृतियां सुंदर, मनभावन व अलंकृत हैं।
17. भगवान आदिनाथ जिनालय - इस जिनालय में 11वीं शताब्दी में स्थापित लगभग 2 फीट ऊँची भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में विराजमान है। तीर्थंकर प्रतिमा के पादमूल में भगवान के यक्ष-यक्षिणी की मूर्तियां भी बनीं हुईं हैं।
चंदेल शासक कला एवं स्थापत्य के महान पुजारी थे । इन्हीं के शासन काल में 950 ई. से 1050 ई. तक यहां विभिन्न मंदिरों का निर्माण किया गया। पूर्व में यहां 85 मंदिर थे; जिनमें से कुछ ही 'लगभग 25 फीट ही शेष बचे हैं। चंदेल
42■ मध्य-भारत के जैन तीर्थ